भोपाल। मप्र की भाजपा सरकार समूचे प्रदेश को भयंकर अंधकार में डुबाकर सत्ता के नशे में चूर होकर कुंभकर्णी नींद सो रही है। आज प्रदेश के कोने-कोने में भाजपाई सत्ता ने अंधेरा परोस दिया है। प्रदेश के नागरिक कमलनाथ सरकार को याद करते हुए कह रहे हैं कि एक कांग्रेस सरकार थी, जिसने बिजली का बिल आधा कर दिया था और भाजपा सरकार है जिसने प्रदेश की बिजली को ही आधा कर दिया है। यह बात पूर्व मंत्री एवं विधायक प्रियव्रत सिंह ने ‘पत्रकार-वार्ता’ में कही।
उन्होंने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान कहते हैं कि प्रदेश में बिजली का कोई संकट नहीं है। वहीं ऊर्जा मंत्री कहते हैं कि प्रदेश में कोयले की कोई कमी नहीं है। आईए, इस बात का खुलासा करते हैं कि मुख्यमंत्री और ऊर्जामंत्री के बयानों में झूठ की कोई कमी नहीं है:-
प्रदेश के ऊर्जा मंत्री कह रहे हैं कोयले की कोई कमी नहीं है। सच्चाई यह है कि 4 मई 2022 को देश के 173 पॉवर प्लांट में से 99 पॉवर प्लांट क्रिटिकल स्थिति में थे। अर्थात उसकी आवश्यकता के 25 प्रतिशत से भी कम जब पॉवर प्लांट में कोयला होता है तो उसे क्रिटिकल स्थिति कहा जाता है। हालात यह है कि दो-दो, चार-चार दिन का कोयला ही इन पॉवर प्लांटों में शेष बचा हुआ है।
मप्र पॉवर जनरेशन कंपनी के चार पॉवर प्लांट में से तीन पॉवर प्लांट क्रिटिकल स्थिति में हैं।
संजय गांधी थर्मल पॉवर प्लांट की स्थापित क्षमता 1340 मेगाॉट है जो 56 प्रतिशत प्लांट लोड फेक्टर पर चल रहा है। अर्थात आधा उत्पादन हो रहा है, जिसमें सामान्य संचालन के लिए कोयले की आवश्यकता 585.6 हजार टन है, मगर इसके पास कोयला 42.6 हजार टन उपलब्ध है और इस प्लांट मंे 85 प्रतिशत प्लांट लोड के आधार पर प्रतिदिन 22.5 हजार टन कोयले की आवश्यकता है। अर्थात दो दिनों का कोयला शेष इस प्लांट मंे बचा है।
सतपुड़ा थर्मल पॉवर प्लांट जिसकी क्षमता 1310 मेगावॉट है जिसका प्लांट लोड फेक्टर 29.6 है। अर्थात इसमें 30 प्रतिशत ही बिजली का उत्पादन हो रहा है। इस पॉवर प्लांट के सामान्य संचालन के लिए 473.6 हजार टन की आवश्यकता है, इसके पास मात्र 43.2 हजार टन कोयला उपलब्ध है। इस प्लांट में प्रतिदिन 18.2 हजार टन कोयले की आवश्यकता है अर्थात दो दिन का कोयला इस प्लांट में शेष बचा है।
श्री सिंगाजी थर्मल पॉवर प्लांट की क्षमता 2520 मेगावॉट है जो कि 42.7 प्लांट लोट फेक्टर पर चला रहा है अर्थात आधी बिजली भी उत्पादित नहीं कर रहा है। इस पॉवर प्लांट के सामान्य संचालन के लिए 944.2 हजार टन कोयले की आवश्यकता है मगर इसके पास सिर्फ 97 हजार टन कोयला ही उपलब्ध है। अर्थात उपरोक्त तीनों प्लांट में 7, 9 और 10 प्रतिशत कोयला ही उपलब्ध है। इस प्लांट में 36.3 हजार टन कोयला उपलब्ध है अर्थात ढाई दिन का कोयला ही शेष बचा है।
मोदी-शिवराज सरकार की नाकामी ने प्रदेश को अंधकार में धकेला
देश और प्रदेश न केवल कोयले की कमी से जूझ रहा है, अपितु भाजपाई अकर्मण्यता से बीते कई दिनांे से कई पॉवर प्लांट बंद पड़े हैं।
1. मप्र जेनको का 210 मेगावॉट का बिरसिंहपुर (संजय गांधी) पॉवर प्लांट बीते 20 दिनों से बंद है।
2. एनटीपीसी खरगोन का 660 मेगावॉट का पॉवर प्लांट बीते 15 दिनों से बंद है। जिसमें मप्र का हिस्सा 330 मेगावॉट है।
3. एनटीपीसी का गाडरवारा 800 मेगावॉट का पॉवर प्लांट बीते कई दिनों से बंद है। जिसमें मप्र का हिस्सा 400 मेगावॉट है।
4. एनटीपीसी सीपथ-हरियाणा 660-660 मेगावॉट पॉवर प्लांट की दो यूनिट विगत दो महीने से बंद है। जिसमें मप्र का हिस्सा 100$100 (200) मेगावॉट है।
5. एनटीपीसी विंध्याचल की 210 मेगावॉट का थर्मल पॉवर प्लांट 12 दिनों से बंद है। जिसमें मप्र का हिस्सा 66 मेगावॉट है।
6. अर्थात एनटीपीसी से मप्र के हिस्से की लगभग 1000 मेगावॉट बिजली प्रदेश को नहीं मिल रही है।
-मप्र में स्थापित विद्युत क्षमता-बनाम-उपलब्धता का सच
आज समूचा मप्र कई दिनों से 1000 से 2000 मेगावॉट बिजली की कमी से जूझ रहा है। ज्यादातर बिजली कटौती मप्र के ग्रामीण अंचलों में की जा रही है। मप्र में मोटे तौर पर बिजली की स्थापित क्षमता:-
1. स्टेट थर्मल पॉवर प्लांट - 4570 मेगावॉट
2. स्टेट हाईडल पॉवर प्लांट - 922 मेगावॉट
3. संयुक्त उपक्रम हाईडल पॉवर प्लांट - 2460 मेगावॉट
4. सासन पॉवर प्लांट - 1485 मेगावॉट
5. निजी थर्मल पॉवर प्लांट - 1916 मेगावॉट
6. सेंट्रल सेक्टर पॉवर प्लांट - 5252 मेगावॉट
7. रिन्युएबल पॉवर प्लांट - 4930 मेगावॉट
8. डीवीसी - 100 मेगावॉट
कुल स्थापित क्षमता 21635 मेगावॉट।
मप्र में बिजली की डिमांड लगभग 12500 मेगावॉट अमूमन रहती है। बीते दिनों उपलब्धता की जानकारी लेने पर ज्ञात हुआ कि मप्र मंे बिजली की उपलब्धता प्रायः निम्नानुसार रहती है:-
हाईडल से 458 मेगावाट, एनटीपीसी से 3148 मेगावाट, मप्र जेनको से 3397 मेगावाट, एटामिक से 300 मेगावाट, विंड एवं सोलर से 1000 मेगावाट, रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर 164 मेगावाट , दामोदर वेली कॉर्पोरेशन थर्मल पॉवर प्लांट 82 मेगावॉट, निजी क्षेत्र (आईपीपी) से 2622 मेगावॉट। अर्थात कुल 11171 मेगावॉट।
चूंकि विंड और सोलर की बिजली की मात्रा उपलब्धता की सुनिश्चितता नहीं रहती है। साथ ही हाईडल पॉवर प्लांट भी मशीन ऑवर्स पर निधारित करते हैं। इसलिए उसकी भी मात्रा सुनिश्चित नहीं रहती।
जहां एक ओर मप्र में पर्याप्त बिजली की उपलब्धता नहीं है, वहीं प्रदेश की भाजपा सरकार ने विद्युत उत्पादन कंपनियों को विगत वर्ष बगैर एक भी यूनिट बिजली लिये 900 करोड़ रू. का भुगतान किया गया।
इतना ही नहीं प्रदेश की भाजपा सरकार की अदूरदर्शी सोच का नतीजा है कि मप्र पॉवर जनरेटिंग कंपनी के अंतर्गत आने वाले विद्युत उत्पादन गृहों की हालत भी निंरतर खराब होती जा रही है। बजट के अंतर्गत विद्युत गृहों के नवीनीकरण एवं आधुनिकीकरण हेतु लगभग राशि रूपये 13 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। जो कि ऊंट के मुंह में जीरे के समान है। मध्यप्रदेश पॉवर जनरेटिंग कंपनी के अंतर्गत आने वाली प्रत्येक ताप विद्युत इकाई वर्ष में कम से कम 12 बार खराबी आती है। जिसके कारण विद्युत उत्पादन प्रभावित होता है। सारणी ताप विद्युत गृह के विस्तार का कार्य विगत कई वर्षों से लंबित है जिस हेतु वर्ष 2022-23 में केवल राशि रूपये 38.53 करोड़ का प्रावधान रखा गया है। इसी तरह पर्यावरण को ध्यान में रखते हुये प्रत्येक ताप विद्युत गृह में एफजीडी (फ्लू गैस डी सल्फराइजेशन) संयत्र की स्थापना की जानी है। जिस हेतु कोई प्रावधान नहीं रखा गया है। गांधी सागर जल विद्युत गृह की दो इकाईयां खराब पड़ी हैं, जिस हेतु बजट में कोई प्रावधान नहीं किया गया है।