भोपाल । मध्यप्रदेश की दो सौ बीटों में शिकारी सक्रिय है। प्रदेश की चार हजार से ज्यादा वन बीटें अतिसंवेदनशील है। भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर व उनके आसपास के जिलों में शिकार की घटनाएं ज्यादा होती हैं, क्योंकि इन शहरों से सटे जंगल घने हैं। इनमें वन्यप्राणियों की आबादी भी ज्यादा है। हर साल पांच सौ से छह सौ के बीच शिकार के मामले सामने आते हैं। उनमें से करीब 45 प्रतिशत मामले इन्हीं क्षेत्रों के होते हैं। मध्य प्रदेश में आठ हजार 286 में से करीब चार हजार वन बीट लकड़ी चोरी, अतिक्रमण और उत्खनन की दृष्टि से अतिसंवेदनशील हैं।
अगर भोपाल और उसके आसपास की ही बात करें, तो जिले का बैरसिया, नजीराबाद, समरधा, रायसेन का सिलवानी, बर्रूखार, चिकलोद, गौहरगंज, गुना का आरोन क्षेत्र और इससे सटा विदिशा जिले का लटेरी और सिरोंज क्षेत्र शिकार की दृष्टि से अतिसंवेदनशील है। जानकार बताते हैं कि भोपाल में ही हर रोज शिकार लाया जाता है, पर सूचना तंत्र कमजोर होने और वन अमले की अनभिज्ञता एवं सुस्ती के कारण ज्यादातर मामले सामने नहीं आ पाते हैं। पिछले एक साल से तो भोपाल में शिकार का एक भी मामला नहीं पकड़ा गया है।
इन वन्यप्राणियों का होता है सबसे ज्यादा शिकार हिरण, सांभर, चीतल, नीलगाय, जंगली सुअर, खरगोश, मोर, चींटीखोर (पेंगोलिन), बाघ (तांत्रिक क्रियाओं के लिए) का सबसे ज्यादा शिकार होता है। जहां मांस के लिए हिरण, सांभर पसंद किए जाते हैं, वहीं इनके सींग और खाल की मांग भी है, जो अंतरराज्यीय तस्करों के माध्यम से विदेशी बाजार तक जाते हैं। इसके अच्छे दाम भी मिल जाते हैं।प्रदेश में 16 हजार 213 मैदानी वन अधिकारियों और कर्मचारियों के बीच 3157 बंदूक एवं 286 रिवाल्वर हैं। शेष अमला डंडा लेकर गश्त कर रहा है। भोपाल, रायसेन, अशोकनगर, विदिशा, गुना, सीहोर, बैतूल, छिंदवाड़ा, उमरिया, मंडला आदि जिले अतिसंवेदनशील हैं। वन अमले की स्थिति वन विभाग के पास वर्तमान में अमला प्रदेश में 12 हजार 329 वनरक्षक, 2527 वनपाल, 544 उप वन क्षेत्रपाल और 813 वन क्षेत्रपाल कार्यरत हैं। जबकि इनके क्रमशः 1695, 1667, 714 और 381 पद लंबे समय से खाली हैं।