दिल्ली में कांग्रेस के नए मुख्यालय के उद्घाटन के मौके पर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के बयान पर सीएम डॉ. मोहन यादव ने पलटवार किया है।
सीएम ने भोपाल में कहा, कांग्रेस जब देखो तब देशविरोधी तरीके से अपनी एक अलग पहचान बनाती है और राहुल गांधी इसके सिरमौर हैं।
उन्होंने कहा, अतीत में उनके नेताओं ने आतंकवादियों के लिए जिस सम्मानजनक ढंग से बयान दिए और देशविरोधी ताकतों के साथ खड़े होकर अपनी देशविरोधी मानसिकता का परिचय दिया, वह राहुल गांधी भूल गए हैं। वे भारतीय लोकतंत्र के दूसरे सबसे बड़े पद पर बैठे हैं।
जनता माफ नहीं करेगी, राहुल माफी मांगें
सीएम ने कहा, देश की जनता उन्हें कभी माफ नहीं करेगी। उन्हें अपने बयान पर खेद व्यक्त करना चाहिए और इसे वापस लेना चाहिए। मैं मानता हूं कि लोकतंत्र में नीतियों पर बोला जाए, लेकिन देशविरोधी मानसिकता को जनता बर्दाश्त नहीं करेगी। मुझे विश्वास है कि राहुल गांधी को यह बात समझ आएगी और वे माफी मांगेंगे।
राहुल ने कहा था- हमारी लड़ाई बीजेपी-आरएसएस के साथ इंडियन स्टेट से भी
बुधवार को कांग्रेस सांसद और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने पार्टी के नए ऑफिस के उद्घाटन के मौके पर कहा कि हमारी लड़ाई बीजेपी-आरएसएस के साथ इंडियन स्टेट के साथ भी है।
राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि मोहन भागवत का बयान राजद्रोह के समान है कि भारत को सच्ची स्वतंत्रता राम मंदिर बनने के बाद मिली।
मोहन भागवत का यह बयान हमारे स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ हर एक भारतीय नागरिक का अपमान है। भागवत का कमेंट हमारे संविधान पर हमला है। भागवत हर दो-तीन दिन में अपने बयानों से देश को यह बताते रहते हैं कि वह स्वतंत्रता आंदोलन और संविधान के बारे में क्या सोचते हैं।
भागवत बोले थे सच्ची स्वतंत्रता प्राण प्रतिष्ठा वाले दिन मिली, इस पर राहुल ने किया था पलटवार
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने सोमवार को कहा था कि अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की तिथि प्रतिष्ठा द्वादशी के रूप में मनाई जानी चाहिए क्योंकि अनेक सदियों से दुश्मन का आक्रमण झेलने वाले देश को सच्ची स्वतंत्रता इस दिन मिली थी।
15 अगस्त तो सिर्फ राजनीतिक स्वतंत्रता मिली: भागवत
3 जनवरी को इंदौर में अहिल्योत्सव समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रम में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि प्रतिष्ठा द्वादशी, बहुशुक्ल द्वादशी का नया नामकरण हुआ है। पहले हम इसे वैकुंठ एकादशी और वैकुंठ द्वादशी कहते थे, लेकिन अब इसे प्रतिष्ठा द्वादशी कहना है।
भागवत ने आगे कहा, अनेक शतकों से परिचक्र झेलने वाले सच्ची स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा उस दिन हो गई। स्वतंत्रता थी, लेकिन वह प्रतिष्ठित नहीं हुई थी। भारत 15 अगस्त को स्वतंत्र हुआ, तब हमें राजनीतिक स्वतंत्रता मिली थी और हमारा भाग्य निर्धारण हमारे हाथ में आ गया था।
पढ़िए मोहन भागवत का पूरा बयान...
मोहन भागवत ने कहा, हमने एक संविधान भी बनाया। एक विशेष दृष्टि, जो भारत के अपने "स्व" से निकलती है, उसमें से वह संविधान प्रतिबिंबित हुआ। लेकिन उसके जो भाव हैं, उनके अनुसार देश नहीं चला और इसलिए स्थिति ऐसी हो गई कि "स्वप्न सभी साकार कैसे मान लें हम, टल गया सिर से व्यथा का भार कैसे मान लें हम।
ऐसी मानसिकता समाज की थी। क्योंकि आवश्यक स्वतंत्रता में "स्व" का आधार होता है, जिसे हमने संविधान के लिखित रूप में पाया। लेकिन हमने अपने मन को उसके पक्के नींव पर आरूढ़ नहीं किया।
हमारा "स्व" क्या है? राम, कृष्ण और शिव। यह केवल देवी-देवता नहीं हैं। राम उत्तर से दक्षिण भारत को जोड़ते हैं, कृष्ण पूर्व से पश्चिम को जोड़ते हैं और शिव भारत के कण-कण में व्याप्त हैं।
भारत का हर व्यक्ति अपने लौकिक जीवन के व्यवहार की मर्यादा में राम को प्रमाण मानता है। जैसा जीवन भी प्राप्त होगा, उस जीवन को झेलते हुए, यदि झेलना पड़े तो; सुखकर जीवन मिले, तो उसमें से पार होते हुए, अनाशक्त कर्म करते हुए, श्रेयस को प्राप्त करना, कृष्ण के जैसे। ऐसा भारत का व्यक्ति मानता है। और आखिर जीना किसके लिए है? "अमृत पीकर दुनिया मरती है, लो अमर हुआ मैं विष पीकर।" नीलकंठ भगवान का आदर्श हमारे सामने है। यह भारत की अपनी प्रकृति का "स्व" है, उसकी प्रकृति का ताना-बाना है।
उनकी पूजा करने वाले हों या उनकी पूजा न करने वाले, सब पर यह लागू है। जानते हो या न जानते हो, यह लागू है। हमारी पूजा बदल गई, तो भी हमारा "स्व" वहीं है। ऊपर के उच्चारणों का परिवर्तन इसे बदल नहीं सकता। इस सत्य को जानना है। हम भारत के लोग कौन हैं, क्या हैं, और बाकी दुनिया से कैसे विशिष्ट हैं।