जहां भारत में अलग-अलग जाति धर्म और संस्कृति के लोग निवास करते हैं।।।। और अलग-अलग विविधताओं से बना मेरा देश भारत देश कहलाता है।।। वहीं भारत में सत्ताधारी पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी ऐसा कानून लेकर आई जिसे कहते हैं यूनिफॉर्म सिविल कोड ।।।।यानी समान नागरिक संहिता क़ानून
बीजेपी ने अपने वादों में कुछ बातें कहीं जो मुख्य रूप से सामने रखी थी जैसे की धारा 370 ,राम मंदिर, तो अब एक ये कानून बीजेपी लेकर आई है इसको कहेंगे यूसीसी यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड।।। अभी हाल ही में अमित शाह ने भोपाल में मंच से कहा कि बहुत जल्द ही समान नागरिक संहिता bjp लेकर आ रही है।।।। बीजेपी में यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी यही दोहराया ।।और कहा2024से पहले कॉमन सिविल कोड लागू होने की तैयारी है ।।।आइए सुनते ही क्या कहा केशव प्रसाद मौर्य ने
लेकिन वहीं विपक्ष पार्टी के नेता इस पर टिप्पणी करते नजर आ रहे एक बार फिर बीजेपी को अपनी नौटंकी करना बता रहे हैं।। आपको बताते हैं कि यूनिफॉर्म सिविल कोड है
क्या समान नागरिक संहिता कानून
सभी को समान कानून का पालन करना जैसे भारत में कहीं घरों में शादी ब्याह होते हैं उत्तराधिकारी के कानून कायदे हैं तलाक के लिए अलग रिवाज है जमीन जायदाद के बंटवारे के तरीके है यह कई सदियों से चला आ रहा है इस विविधता को ध्यान में रखते हुए हमारे यहां कई कानून बनाए
मुस्लिम पर्सनल लॉ
हिंदू मैरिज एक्ट
ईसाई पर्सनल लॉ
और भी कई अलग-अलग कानून है।। जिन्हें अलग-अलग मान्यता मिली है पर लोगों को सबसे ज्यादा एतराज है मुस्लिम पर्सनल लॉ से मुस्लिम पर्सनल लॉ में 4 वीवाह की मंजूरी पर बीजेपी ने कई बार इसे मुद्दा बनाया है ।।उनका कहना है कि सभी नागरिकों के लिए एक समान कानून होना चाहिए कानून का किसी धर्म विशेष से ताल्लुक में ही रहेगा अलग-अलग धर्म के पर्सनल लो खत्म हो जाएंगे।। शादी ,तलाक हो, जमीन जात के मामलों में एक ही कानून चलेगा धर्म के आधार पर किसी को भी विशेष लाभ नहीं दिया जाएगा।। लेकिन हां सुनने में थोड़ा सीधा-साधा लग सकता है इस पर अत्यधिक जोर हड़बड़ी दरअसल भारत के सांस्कृतिक जीवन के ताने-बाने पर चोट कर सकती है।। जो हमारी खूबि ओर खासियत है।। ऐसा नहीं है कि इसका असर सिर्फ मुस्लिम समाज पर ही पड़ेगा लेकिन हिंदू समाज के बीच कई रिती रिवाज इसकी चपेट में आएंगे जैसे आदिवासियों दलित समाज के भीतर यह कॉमन सिविल कोड ज्यादा समस्या खड़ी कर सकता है।। लेकिन 2018 में भारतीय विधि आयोग ने कहा था कि समान नागरिक संहिता जरूरी नहीं है।।। देश में कई सांस्कृतिक विविधता एक हद से आगे नहीं किया जाना चाहिए मौजूदा कानून में कुछ संशोधन किए जाने चाहिए ताकि उनके मौजूद भेदभाव खत्म किया जा सके ।।ऐसा हैं कि कॉमन सिविल कोर्ट को संविधान विरोधी नहीं माना गया है बल्कि यह माना गया है कॉमन सिविल कोड एक आदर्श है ।।।जहां पर पहुंचने की कोशिश की जाना चाहिए थी अनुच्छेद 40 का हिस्सा है राज्य के नीति निर्देशक यानी डायरेक्टिव प्रिंसिपल ऑफ स्टेट पॉलिसी कहा गया है यानी इन पर अमल जरूरी नहीं है लेकिन देर सबेर हो सके तो अच्छा होगा।। लेकिन जब तक उसके हालात नहीं बनते उसे थोपा नहीं जा सकता
लेकिन भारत देश में एक ऐसा राज्य है जहां कॉमन सिविल कोड लागू हैं गोवा गोवा में लागू है
अब उत्तराखंड और कई राज्यों में तैयारी हो रही हैं।।यूपी मध्य प्रदेश और हिमाचल में भी यह मुद्दा गरमाता नजर आ रहा है।। लेकिन कॉमन सिविल कोर्ट को अल्पसंख्यक विरोधी कानून की तरह देखता है।। उसे लगता है कि उनकी पहचान खत्म कर सकता है बीते दिनों में कई ऐसे मामले सामने आए
जैसे नागरिकता संशोधन कानून के मुसलमान को बाहर किया गया सबको खटका
तीन तलाक के लिए जो राजनीतिक छिड़ी उसे कम पसंद किया गया
एनआरसी को ऐसे पेश किया गया जैसे वह मुसलमान विरोधी हैं
इसके अलावा हिसाब अजान हलाल जैसे मुद्दे लगातार उछाले जाते है ऐसे में कॉमन सिविल कोड थोड़ा दूर का सपना लगता है लेकिन इस देश में कोई कॉमन कोड बनता है तो उसे सभी आस्थाओं को साथ लेकर चलना होगा क्योंकि भारत देश की यही पहचान है विविधता में एकता यही है भारत की विशेषता।।।।।।।