पार्षदों को साथ लेकर नहीं चल पाने के कारण कुछ निकायों में अविश्वास प्रस्ताव प्रस्तुत कर दिए गए। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार ने अध्यादेश के माध्यम से नगर पालिका अधिनियम 1961 की धारा 43 (क) में नया प्रावधान किया।
इसके अनुसार अविश्वास प्रस्ताव दो के स्थान पर तीन वर्ष की कालावधि पूर्ण होने पर ही लाया जा सकता है और इसे पारित करने के लिए दो-तिहाई के स्थान पर तीन-चौथाई पार्षदों का समर्थन अनिवार्य कर दिया।
यही व्यवस्था अब नगर निगम के अध्यक्ष/सभापति के लिए भी लागू की जा रही है। इसके साथ ही नगर पालिका और नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से कराने की तैयारी है।
प्रदेश में नगरीय निकायों के चुनाव अब वर्ष 2027 में होंगे। उल्लेखनीय है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने कांग्रेस के भूपेश बघेल की सरकार के समय अप्रत्यक्ष प्रणाली से लागू की गई चुनाव की व्यवस्था में परिवर्तन कर अध्यक्ष का चुनाव सीधे जनता से कराने का निर्णय लिया है।
उधर, जिला और जनपद पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव भी सीधे जनता से कराने की तैयारी है। इसके लिए पंचायतराज अधिनियम में संशोधन की तैयारी चल रही है। अभी अध्यक्ष सदस्य के माध्यम से चुने जाते हैं। किसी एक सदस्य के पास बहुमत नहीं होने पर सदस्यों का समर्थन प्राप्त करने के लिए दबाव बनाने और प्रलोभन देने की शिकायतें सामने आती हैं।