नहीं होनी चाहिए थी 'द कश्मीर फाइल्स' की स्क्रीनिंग, समाज में जहर घोल रही भाजपा : शरद पवार

Updated on 01-04-2022 09:07 PM

नई दिल्ली। ऐसे समय में जबकि कश्मीर फाइल्सको लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की टिप्पणी पर भाजपा और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच वाकयुद्ध चल रहा है, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी प्रमुख शरद पवार ने भी इस फिल्म पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। पवार ने कहा भाजपा कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन के बारे में झूठ फैलाकर देश में जहरीला माहौल बनाने का प्रयास कर रही है।

शरद पवार ने अपनी पार्टी की दिल्ली इकाई के अल्पसंख्यक विभाग के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा ऐसी फिल्म को स्क्रीनिंग के लिए मंजूरी नहीं देनी चाहिए थी। लेकिन इसे कर रियायतें दी जा रही हैं और देश को एकजुट रखने के की जिम्मेदारी जिन लोगों की है, वही जनता से इस फिल्म को देखने की अपील कर रहे हैं। फिल्म लोगों को भड़काने का काम करती है जिसे प्रोत्साहित किया जा रहा है।

इससे पहले कांग्रेस ने भी  कश्मीर फाइल्सफिल्म के प्रचार के लिए भाजपा पर हमला बोला था। कांग्रेस पार्टी के संचार विभाग के प्रमुख रणदीप सुरजेवाला ने मोदी सरकार पर फिल्म के जरिए समाज में नफरत फैलाने का प्रयास करने का आरोप लगाया था। शरद पवार ने कहा कि कश्मीरी पंडितों को वास्तव में घाटी से भागना पड़ा था लेकिन मुसलमानों को भी इसी तरह निशाना बनाया गया था।

राकांपा प्रमुख ने कहा पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूह कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों पर हमलों के लिए जिम्मेदार थे। अगर नरेंद्र मोदी सरकार वास्तव में कश्मीरी पंडितों की परवाह करती है, तो उसे उनके पुनर्वास के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए कि अल्पसंख्यकों के खिलाफ लोगों के अंदर गुस्सा भड़काने का प्रयास करना चाहिए। शरद पवार की यह टिप्पणी ऐसे समय आई है जब शिवसेना नेतृत्व मान रहा है कि एनसीपी भाजपा के प्रति नरम रुख अपना रही है। महाराष्ट्र के सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी गठबंधन में शिवसेना के साथ कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी एनसीपी शामिल है।

शरद पवार ने कश्मीर पर बहस में जवाहरलाल नेहरू को घसीटने के लिए भी भाजपा की आलोचना की।

उन्होंने तर्क दिया कि जब घाटी से कश्मीर पंडितों का पलायन शुरू हुआ तो उस समय वीपी सिंह प्रधानमंत्री थे और उनकी सरकार को भाजपा का समर्थन प्राप्त था। शरद पवार ने कहा वीपी सिंह सरकार को भाजपा का समर्थन प्राप्त था। मुफ्ती मोहम्मद सईद गृह मंत्री थे और जगमोहन, जिन्होंने बाद में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में दिल्ली से लोकसभा चुनाव लड़ा, वह जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल थे। उन्होंने कहा कि तत्कालीन जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने जगमोहन के साथ मतभेदों के बाद इस्तीफा दे दिया था और यह राज्यपाल ही थे जिन्होंने कश्मीरी पंडितों को घाटी से पलायन करने में मदद की थी।


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