भोपाल । छह साल होने को आये हैं, 28 फरवरी 2016 को उत्तरप्रदेश के बरेली की रैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना कर दी जायेगी। मगर आज छह साल बाद मोदी और शिवराज सरकार के किसानों के साथ किये गये विश्वासघात का परिणाम है कि किसानों की आय बढ़ना तो दूर उल्टी पहली की अपेक्षा कम हो गई है।
हाल ही में सितम्बर 2021 में राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा ग्रामीण भारत में कृषि परिवारों की स्थिति को लेकर जारी रिपोर्ट में यह चौकाने वाला खुलासा हुआ था कि एक किसान की प्रतिदिन की आमदनी 26.67 रू. खेती से रह गई है और देश में किसानों पर औसत कर्ज 74 हजार 121 रू. है। इस रिपोर्ट मंे यह भी खुलासा हुआ है कि किसान खेती की अपेक्षा मजदूरी करने को अधिक मजबूर हो गये हैं। किसानों की होने वाली आमदनी में 39.8 प्रतिशत हिस्सा वे प्रतिमाह मजदूरी से अर्जित कर रहे हैं और फसल उत्पादन से 37.2 प्रतिशत।
इतना ही नहीं 24 मार्च 2022 को मोदी सरकार की पार्लियामेंट्री कमेटी ने भी यह खुलासा किया कि मप्र देश के उन चार राज्यों मंे शुमार है, जहां किसान परिवारों की आमदनी 2015-16 के मुकाबले 2018-19 में 9 हजार 740 रू. से घटकर 8 हजार 339 रू. रह गई है। स्वभाव से भाजपा सरकारें किसान विरोधी रही हैं।
मप्र के किसानों की बदहाली की कहानी, आंकड़ों की जुबानी में ............
समर्थन मूल्य का सच:-
हाल ही में 28 मार्च 2022 से रबी सीजन 2022-23 का समर्थन मूल्य पर गेहूं, चना, मसूर, सरसो की खरीदी प्रारंभ की गई। आज दिनांक तक 3 लाख 83 हजार 551 किसानों से 31 लाख 94 हजार 613 मेट्रिक टन गेहूं खरीदा गया तथा 58 हजार 402 किसानों से 1 लाख 43 हजार 708 मेट्रिक टन चना खरीदा गया। पहले तो 28 मार्च से लेकर 22 अप्रैल 2022 तक किसानों से खरीदी गई फसल का एक रूपया भी भुगतान सरकार ने नहीं किया।
आज दिनांक तक 6437.1 करोड़ रू. का गेहूं खरीदा गया और 752 करोड़ रू. का चना खरीदा गया, मगर किसानों को अब तक गेहूं के सिर्फ 3474 करोड़ रू. और चने के 328 करोड़ रू. किसानों के खाते में डाले गये अर्थात 7 हजार 189.1 करोड़ रू. के अनाज खरीदी के एवज में अब तक मात्र 3 हजार 802 करोड़ रू. का भुगतान सरकार द्वारा किसानों को किया गया।
क्या ये नियोजित षड्यंत्र सरकार ने निजी व्यापारियांे को लाभ पहुंचाने के लिए किया है?
चूंकि यूक्रेन-रशिया युद्ध की बजह से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में फसलों के दाम अच्छे मिल रहे हैं तो क्या मप्र की भाजपा सरकार ने किसानों को समय पर भुगतान न करके सरकारी खरीद को हतोत्साहित किया और किसानों ने औने-पौने भाव में अपना अनाज व्यापारियों को बेंच दिया। यह बात इसलिए भी बहुत प्रामाणिक प्रतीत होती है, क्योंकि रबी सीजन 2021-22 में 17 लाख 16 हजार 671 किसानांे ने 1 करोड़ 28 लाख 15 हजार 970 मेट्रिक टन गेहंू सरकार को बेचा था और आज अब तक मात्र 3 लाख 83 हजार 551 किसानों ने 31 लाख 94 हजार 613 मेट्रिक टन गेहूं समर्थन मूल्य पर बेचा है।
इसी प्रकार चना भी 1 लाख 43 हजार 708 मेट्रिक टन ही अब तक समर्थन मूल्य पर खरीदा गया है। जबकि समर्थन मूल्य पर इंदौर, उज्जैन में खरीद की अंतिम तिथि 10 मई है तथा शेष जिलो में खरीदी की अंतिम तिथि 16 मई निर्धारित है।
सम्मान निधि के नाम पर अपमान का घूंट
मोदी सरकार ने दिसम्बर 2018 से किसान सम्मान निधि की घोषणा की थी, जिसमें यह तय किया था कि प्रत्येक किसान के खाते में 6000 रू. सालाना डाला जायेगा, ताकि खेती का लागत मूल्य घटाया जा सके। मगर सच्चाई यह है कि मोदी सरकार ने बीते सात सालांे में 25 हजार रू. हेक्टेयर खेती की लागत बढ़ा दी।
पहली बार खेती पर टैक्स यानी जीएसटी लगाया गया। ट्रेक्टर व खेती के उपकरणों पर 12 प्रतिशत टैक्स, टेªक्टर टायर व अन्य पुर्जो पर 5 प्रतिशत टैक्स, खाद पर 5 प्रतिशत और कीटनाशक दवाईयों पर 18 प्रतिशत टैक्स, डीजल की कीमत औसत 35 रू. प्रति लीटर बढ़ा दी, खाद के दाम में वृद्धि की गई।
आज चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि मप्र मंे हजारों की संख्या में किसानों को शिवराज सरकार किसान सम्मान निधि वापिस लौटाने के नोटिस दे रही है और राशि नहीं लौटाने पर बलात् कार्यवाही की धमकी दे रही है।
एक तरफ कमलनाथ सरकार थी जो किसानों के दो लाख रू. तक के कर्ज को माफ कर किसानों को राहत दे रही थी। दूसरी तरफ शिवराज सरकार ने आते ही किसान कर्जमाफी को रोक दिया अब दूसरा कुठाराघात किसानों से किसान सम्मान निधि वापस मांग रही है।
जबकि सच्चाई यह है कि बीते तीन सालों मंे क्रमशः 2 लाख 44 हजार 407, 45 हजार 219 और 84 हजार 338 किसानों का क्रमशः 48 करोड़ 88 लाख 14000 करोड़ रू. 9 करोड़ 04 लाख 38000 करोड़ रू. 16 करोड़ 86 लाख 76000 करोड़ रू. पात्र किसानों के खातों में मोदी सरकार ने तकनीकी त्रुटि बताकर अब तक नहीं डाले हैं।
जबकि किसानों से अपात्रता के नाम पर पुनः किसान सम्मान निधि बलात् मांगी जा रही है। मप्र कांग्रेस कमेटी इस बलात् कार्यवाही का पुरजोर विरोध करती है।
किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग को
बना दिया किसान विनाश विभाग
भाजपा सरकार किसानों के विकास के साथ किस हद तक दुर्व्यवहार कर सकती है। यह सुनकर रौंगटै खड़े हो जाते हैं।
केंद्र प्रायोजित योजना के तहत मोदी सरकार ने किसान कल्याण तथा कृषि विकास विभाग की योजनाआंे में मात्र 44.37 प्रतिशत राशि ही मप्र को जारी की।
कृषि विकास की कई योजनाओं में तो बीते वर्ष एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया। जैसे परंपरागत कृषि विकास योजना, स्वाइल हेल्थकार्ड, ट्रेक्टर एवं कृषि उपकरणों पर अनुदान, प्रधानमंत्री कृषि सिचाई योजना। साथ ही राष्ट्रीय खाद सुरक्षा मिशन जैसी महत्वाकांक्षी योजना मंे भी मात्र 61 प्रतिशत राशि ही जारी की गई। सबमिशन ऑन एग्रीकल्चर एक्टेंशन (आत्मा) में 54 प्रतिशत राशि जारी की गई।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के 1 लाख 06 हजार 583 लाख रू. के बजट में कुल 44.37 प्रतिशत राशि ही केंद्र ने अपने हिस्से की भेजी। (चार्ट संलग्न)
इतना ही नहीं एक तरफ मोदी सरकार ने प्रदेश को राशि जारी नहीं की। दूसरी ओर मोदी सरकार ने बीते तीन वर्षों में कृषि कल्याण विभाग के क्रमशः 34 हजार 517.70 करोड़, 23 हजार 824.54 करोड़ और 9 हजार 586.86 करोड़ अर्थात तीन सालों में 67 हजार 929.10 करोड़ रू. खर्च ही नहीं किये और सरेण्डर कर दिये।