भोपाल । यदि छन्ना लगाकर ही गेहूं बेचना है तो समर्थन मूल्य से कहीं ज्यादा कीमत बाजार में मिल जाएगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर गेहूं को छन्ना लगाने के बाद बेचने को लेकर किसानों का यह तर्क है। किसानों को छन्ना का खर्च भी प्रति क्विंटल 20 रुपये देना होगा।
यही कारण है कि पिछले वर्ष प्रदेश के 28 लाख किसानों ने एमएसपी के लिए पंजीयन कराया था, जबकि इस वर्ष 20 लाख 77 हजार किसानों ने ही पंजीयन कराया है। इसका असर प्रदेश की गेहूं खरीद पर भी पड़ेगा। पिछले साल पंजाब को पीछे करने के बाद इस वर्ष गेहूं की कम खरीद होगी। ज्ञात हो किमध्य प्रदेश में 25 मार्च से शुरू होने वाली गेहूं खरीद के लिए इस वर्ष जिन किसानों ने पंजीयन कराया है, उनमें से दो लाख किसानों को पचास-पचास रुपये पंजीयन शुल्क देना पड़ा है। दरअसल, पहले प्राथमिक साख सहकारी समिति में ही किसानों का पंजीयन नि:शुल्क किया जाता था, लेकिन इस वर्ष गेहूं खरीदी नीति में कई बदलाव किए गए हैं। उनमें पंजीयन का काम सहकारी समितियों के अलावा एमपी आनलाइन, कामन सर्विस सेंटर और एमपी किसान एप को भी दे दिया गया है। इन सेंटरों ने प्रत्येक किसान से पंजीयन के लिए पचास रुपये की वसूली की है।
बड़ी संख्या में किसानों को आधार में पंजीकृत मोबाइल नंबर भी अपडेट कराना पड़ रहा है। क्योंकि ओटीपी नंबर के आधार पर ही किसान के आधार नंबर का सत्यापन होना था। इस प्रक्रिया में भी किसानों को पचास रुपये का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ा। अब स्लाट बुक करने के लिए फिर इन सेंटरों में किसानों को जाना पड़ेगा। इस दौरान फिर उन्हें एक अन्य शुल्क देना पड़ेगा। इस वर्ष किसानों को सिर्फ आधार से जुड़े बैंक खातों में ही पैसा भेजा जाएगा। इससे किसान को परेशानी यह होगी कि यदि उसके चार बैंक खाते हैं तो जो आधार से जुड़ा अंतिम खाता होगा, पैसा उसी खाते में जाएगा। गौरतलब है कि इंदौर और उज्जैन संभाग में 25 मार्च से गेहूं की खरीद प्रारंभ होने जा रही है। वहीं बाकी प्रदेश में यह एक अप्रैल से शुरू होगी।
इस बार गेहूं खरीद नियमों में किए गए बदलाव का व्यापक असर दिख रहा है। उत्तर प्रदेश का गेहूं खरीदी माडल मध्य प्रदेश में लागू किए जाने के कारण सात लाख किसानों ने समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर अपनी उपज बेचने के लिए पंजीयन नहीं कराया। दरअसल, इस वर्ष प्रदेश के किसानों से छन्ना लगाकर गेहूं की खरीदी की जाएगी। इससे किसानों को नुकसान होगा। पहला नुकसान उन छोटे दानों का होगा, जो छन्ना लगाने पर बचेंगे। उस गेहूं का परिवहन खर्च भी किसान को भुगतना होगा। दूसरा नुकसान उसे औने-पौने दाम पर बेचने से भी किसान को आर्थिक क्षति होगी।