यूपी, महाराष्ट्र, बंगाल... ये किस संकट से घिर गए हैं राज्य, आंकड़ों से समझिए कितनी बड़ी मुसीबत को दे दी है दावत?
Updated on
10-03-2025 03:14 PM
नई दिल्ली: भारतीय राज्यों के कर्ज में भारी बढ़ोतरी हुई है। बॉन्ड के जरिये ये पैसा जुटाने में लगे हैं। इसने केंद्र सरकार के बॉन्ड की तुलना में उनके प्रीमियम को बढ़ा दिया है। यह और बढ़ने की उम्मीद है। कारण है कि कुल सप्लाई रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंचने वाली है। मंगलवार को राज्यों ने बॉन्ड बिक्री से 505 अरब रुपये ($5.80 अरब) जुटाए। यह इस वित्त वर्ष का सबसे ज्यादा आंकड़ा है। 10 साल के बॉन्ड की यील्ड 7.21% - 7.34% के बीच रही। कटऑफ यील्ड सात महीनों में अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई। 10 साल की बेंचमार्क बॉन्ड यील्ड लगभग 6.73% थी। इससे राज्य के कर्ज का अंतर 48-61 बेसिस पॉइंट हो गया, जो 13 महीनों में सबसे ज्यादा है। जब राज्य सरकार के बॉन्डों की भारी सप्लाई होती है और अगर निवेशकों की मांग उसी दर से नहीं बढ़ती है तो उन बॉन्डों की कीमत कम हो जाती है। निवेशकों को आकर्षित करने के लिए राज्यों को ऊंची ब्याज दरें देनी होती हैं, जिससे उनकी उधार लागत बढ़ जाती है। जब राज्य भारी मात्रा में उधार लेते हैं तो कर्ज चुकाने की उनकी क्षमता के बारे में चिंताएं बढ़ने लगती है। जोखिम में इस इजाफे से निवेशक भी ऊंची ब्याज दरों की मांग करते हैं।
हाल में राज्यों के कर्ज पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने एक रिपोर्ट जारी की थी। उसने बताया था कि 2019 में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का कुल बकाया कर्ज 47.9 लाख करोड़ रुपये था। यह 2024 में 74 फीसदी बढ़कर 83.3 लाख करोड़ रुपये हो गया है। इस भारी कर्ज में सबसे अधिक योगदान तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बंगाल और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों का है। कर्ज बढ़ने की कई वजह हैं। इनमें आर्थिक चुनौतियां भी शामिल हैं। इनसे निपटने के लिए राज्यों को ज्यादा उधार लेना पड़ा।
क्यों अहम हैं ये आंकड़े?
राज्य सरकारें आम तौर पर केंद्र सरकार के बॉन्ड यील्ड से ज्यादा प्रीमियम देती हैं क्योंकि वे अर्ध-संप्रभु (क्वासी सॉवरेन) हैं। राज्य सरकारें कुल सरकारी खर्च का बड़ा हिस्सा वहन करती हैं। इससे पिछले कुछ वर्षों में उधारी बढ़ी है। भारी राज्य उधारी से देश का डेट-टू-जीडीपी रेशियो यानी सार्वजनिक कर्ज और उसके सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के बीच का अनुपात बढ़ेगा। यह एक महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतक है। इसका इस्तेमाल यह मापने के लिए किया जाता है कि कोई देश अपने कर्जों का भुगतान करने में कितना समर्थ है। हालांकि, केंद्र सरकार राजकोषीय घाटे और उधारी के कम लक्ष्यों के साथ राजकोषीय समझदारी का पालन कर रही है। बीमा कंपनियां, प्रोविडेंट फंड (पीएफ) और पेंशन फंड जैसे लॉन्ग-टर्म इन्वेस्टर राज्य के कर्ज के प्रमुख निवेशक हैं। राज्यों से भारी सप्लाई के चलते 30- और 50-साल वाले केंद्र सरकार के बॉन्ड की मांग कम हो गई है। केंद्र सरकार ऐसे ज्यादा लंबी के अवधि वाले बॉन्ड के जरिये अपनी ज्यादातर उधारी का लक्ष्य रख रही है।
राज्यों पर बढ़ेगा ब्याज का बोझ
ICICI सिक्योरिटीज प्राइमरी डीलरशिप के सीनियर इकनॉमिस्ट अभिषेक उपाध्याय ने कहा, 'आरामदायक नकदी स्थिति के बावजूद राज्यों के उधार लेने की आशंका है। कारण है कि उनकी उधार सीमा का पूरी तरह से उपयोग करने की इच्छा है, लेकिन अगले वित्त वर्ष की शुरुआत में फंडिंग कम हो सकती है।' जैसे-जैसे राज्य के कर्ज की सप्लाई बढ़ी है, डिमांड साइड को लेकर कुछ चिंताएं हो सकती हैं जो धारणा पर भारी पड़ रही हैं।
बाजार जानकारों को उम्मीद है कि राज्यों से ज्यादा सप्लाई के कारण अंतर और बढ़ेगा। इस बढ़ते हुए अंतर का मतलब है कि राज्यों को केंद्र सरकार की तुलना में ज्यादा ब्याज देना होगा। यह उनके बजट पर अतिरिक्त बोझ डाल सकता है। यह देश के समग्र कर्ज के स्तर को भी प्रभावित कर सकता है।
उधारी बढ़ने के क्या हैं कारण?
राज्यों की भारी उधारी के कई कारण हैं। एक कारण बुनियादी ढांचा परियोजनाओं और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए बढ़ता खर्च है। महामारी ने भी कई राज्यों के वित्त पर दबाव डाला है। केंद्र सरकार ने राज्यों के लिए उधार सीमा बढ़ा दी है। इससे उन्हें ज्यादा उधार लेने में मदद मिली है। हालांकि, इससे कर्ज का स्तर भी बढ़ा है। राज्यों की भारी उधारी का देश की अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। यह ब्याज दरों को बढ़ा सकता है। निजी क्षेत्र के लिए उधार लेना मुश्किल बना सकता है। यह आर्थिक विकास को भी धीमा कर सकता है। इससे यह भी पता चलता है कि राज्यों का खर्च पर नियंत्रण कम है। यह चिंताजनक है क्योंकि इससे कर्ज का स्तर बढ़ सकता है।
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