नई दिल्ली । सेना में भर्ती की नई योजना अग्निपथ को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल की गई है। इस तरह अब तक तीन याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा चुकी हैं। इनमें अग्निपथ योजना पर रोक लगाने की मांग की गई है। उधर केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कैवियट दाखिल करके कहा गया है कि कोई भी निर्णय लेने से पहले केंद्र का पक्ष भी सुना जाना चाहिए।
अग्निपथ स्कीम को लेकर देश के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन के बीच अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे तक पहुंच गया है। इस मामले में तीनों याचिकाएं तीन वकीलों ने दाखिल की हैं। पहली दो याचिकाएं एडवोकेट विशाल तिवारी और एमएल शर्मा ने दायर की थी। सोमवार को एडवोकेट हर्ष अजय सिंह ने भी एक याचिका देकर सुप्रीम कोर्ट से इस मामले में दखल देने की गुजरिश की।
एडवोकेट हर्ष ने अपनी रिट याचिका में कहा कि अग्निपथ योजना के तहत 4 साल के लिए युवाओं की सेना में भर्ती की जा रही है, उसके बाद 25 फीसदी अग्निवीरों को ही आगे स्थाई किया जाएगा। उन्होंने दलील दी है कि युवावस्था में चार साल का कार्यकाल पूरा होने पर अग्निवीर आत्म-अनुशासन बनाए रखने के लिए न तो पेशेवर रूप से और न व्यक्तिगत रूप से पर्याप्त परिपक्व होंगे। ऐसे में प्रशिक्षित अग्निवीरों के भटकने की बहुत संभावनाएं हैं।
इससे पहले, एडवोकेट मनोहर लाल शर्मा ने अग्निपथ योजना को चुनौती देने वाली अपनी याचिका में आरोप लगाया था कि सरकार ने सेना में भर्ती की दशकों पुरानी नीति को संसद की अनुमति के बिना बदल दिया है, जो संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ है। उन्होंने कहा है कि अफसरों के लिए सेना में स्थाई कमीशन होता है और वो 60 साल तक की उम्र में रिटायर हो सकते हैं। शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) के तहत सेना में शामिल होने वालों के लिए
10/14 साल तक सर्विस का विकल्प होता है। इसके उलट सरकार अब युवाओं को कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर रखने लिए अग्निपथ स्कीम लेकर आई है।
युवाओं को इस स्कीम के बाद अपना भविष्य अंधकारमय लग रहा है। जगह-जगह प्रदर्शन हो रहे हैं। ऐसे में 14 जून के ऑर्डर और नोटिफिकेशन को खारिज करके गैर संवैधानिक घोषित किया जाए। इससे पहले 18 जून को एडवोकेट विशाल तिवारी ने जनहित याचिका दाखिल करके अग्निपथ हिंसा मामले में एसआईटी जांच कराए जाने की गुहार लगाई गई थी। लाइव लॉ वेबसाइट के मुताबिक, उन्होंने अग्निपथ योजना पर सवाल उठाते हुए इसे परखने के लिए एक एक्सपर्ट कमिटी के गठन की भी मांग की थी।
अग्निपथ योजना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक के बाद एक याचिकाएं दाखिल होने पर केंद्र सरकार की तरफ से भी कैवियट दाखिल की गई है। इसमें सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई गई है कि कोई भी निर्णय या फैसला लेने से पहले सरकार का पक्ष भी सुना जाए।