सुप्रीम कोर्ट ने रोड रेज मामले में नवजोत सिंह सिद्धू को एक साल के जेल की सजा सुनाई

Updated on 20-05-2022 11:36 PM

नई दिल्ली देश की सर्वोच्च अदालत ने क्रिकेटर से नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू को रोड रेज मामले में एक साल कैद की सजा सुनाई है। विद्वान न्यायाधाश न्यायमूर्ति एम खानविलकर और न्यायमूर्ति एस के कौल की पीठ ने सिद्धू को दी गई सजा के मुद्दे पर पीड़ित परिवार द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका को स्वीकार कर लिया।

हालांकि शीर्ष अदालत ने मई 2018 में सिद्धू को मामले में 65 वर्षीय एक व्यक्ति को 'जानबूझकर चोट पहुंचाने' के अपराध का दोषी ठहराया था, लेकिन 1,000 रुपये का जुर्माना लगाकर छोड़ दिया था। पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘...हमें लगता है कि रिकॉर्ड में एक त्रुटि स्पष्ट है। ....इसलिए, हमने सजा के मुद्दे पर पुनर्विचार आवेदन को स्वीकार किया है। लगाए गए जुर्माने के अलावा, हम एक साल के कारावास की सजा देना उचित समझते हैं।’’


सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत मृतक के परिवार द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका पर गौर करने पर सहमत हो गई थी और नोटिस जारी किया था, जो सजा की मात्रा तक सीमित था। शीर्ष अदालत ने पूर्व में सिद्धू से उस अर्जी पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा था जिसमें कहा गया था कि मामले में उनकी दोषसिद्धि केवल जानबूझकर चोट पहुंचाने के छोटे अपराध के लिए ही नहीं होनी चाहिए थी। सिद्धू ने 25 मार्च को शीर्ष अदालत से कहा था कि उन्हें दी गई सजा की समीक्षा से संबंधित मामले में नोटिस का दायरा बढ़ाने का आग्रह करने वाली याचिका प्रक्रिया का दुरुपयोग है।


नोटिस का दायरा बढ़ाने का आग्रह करने वाली याचिका के जवाब में सिद्धू ने कहा था कि शीर्ष अदालत ने समीक्षा याचिकाओं की सामग्री का सावधानीपूर्वक अध्ययन करने के बाद सजा की अवधि तक इसके दायरे को सीमित कर दिया है। जवाब में कहा गया था, "यह अच्छी तरह से तय है कि जब भी यह अदालत सजा को सीमित करने के लिए नोटिस जारी करती है, तब तक केवल उस प्रभाव के लिए दलीलें सुनी जाएंगी जब तक कि कुछ असाधारण परिस्थिति/सामग्री अदालत को नहीं दिखाई जाती है।

यह सम्मानपूर्वक प्रस्तुत किया गया है कि वर्तमान आवेदनों की सामग्री केवल खारिज किए गए तर्कों को दोहराती है और इस अदालत से सभी पहलुओं पर हस्तक्षेप करने के लिए कोई असाधारण सामग्री नहीं दिखाती है।’’ इसमें कहा गया था कि शीर्ष अदालत ने मेडिकल साक्ष्य सहित रिकॉर्ड में मौजूद सभी सबूतों का अध्ययन किया, ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि गुरनाम सिंह की मौत के कारण का पता नहीं लगाया जा सका।


सिद्धू ने कहा था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि "मौत प्रतिवादी के एक ही आघात से हुई थी (यह मानते हुए कि घटना हुई थी) और इस अदालत ने सही निष्कर्ष निकाला कि यह भादंसं की धारा 323 के तहत आएगा।" भारतीय दंड संहिता की धारा 323 (जानबूझकर चोट पहुंचाने) में अधिकतम एक वर्ष तक की कैद या 1,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों सजाएं हो सकती हैं। शीर्ष अदालत ने 15 मई 2018 को सिद्धू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराने तथा मामले में तीन साल कैद की सजा सुनाने के पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया था लेकिन इसने उन्हें एक वरिष्ठ नागरिक को चोट पहुंचाने का दोषी ठहराया था।


शीर्ष अदालत ने सिद्धू के सहयोगी रूपिंदर सिंह संधू को भी सभी आरोपों से यह कहते हुए बरी कर दिया था कि दिसंबर 1988 में अपराध के समय सिद्धू के साथ उनकी उपस्थिति के बारे में कोई भरोसेमंद सबूत नहीं है। बाद में सितंबर 2018 में शीर्ष अदालत मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर पुनर्विचार याचिका पर गौर करने के लिए सहमत हुई थी।


अभियोजन पक्ष के अनुसार, सिद्धू और संधू 27 दिसंबर, 1988 को पटियाला में शेरांवाला गेट क्रॉसिंग के पास एक सड़क के बीच में खड़ी एक जिप्सी में थे। उस समय गुरनाम सिंह और दो अन्य लोग पैसे निकालने के लिए बैंक जा रहे थे। जब वे चौराहे पर पहुंचे तो मारुति कार चला रहे गुरनाम सिंह ने जिप्सी को सड़क के बीच में पाया और उसमें सवार सिद्धू तथा संधू को इसे हटाने के लिए कहा। इससे दोनों पक्षों में बहस हो गई और बात हाथापाई तक पहुंच गई।

गुरनाम सिंह को अस्पताल ले जाया गया जहां उनकी मौत हो गई। सितंबर 1999 में निचली अदालत ने सिद्धू को हत्या के आरोपों से बरी कर दिया था। हालांकि, उच्च न्यायालय ने फैसले को उलट दिया और दिसंबर 2006 में सिद्धू तथा संधू को गैर इरादतन हत्या का दोषी ठहराया। इसने उन्हें तीन साल के कारावास की सजा सुनाई थी और उन पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।


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