तीन पूर्व अफगान जनरलों ने एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि रूसी सरकार अफगान कमांडो को अपनी सेना में शामिल करने के लिए कई तरह के प्रलोभन दे रहा है। इसमें बढिया सैलरी और उनकी और परिवार की सुरक्षा भी शामिल है जो तालिबान शासित अफगानिस्तान में फंसे हुए हैं।
लड़ाई नहीं चाहते लेकिन, विकल्प नहीं
तीनों में से एक पूर्व जनरल अब्दुल रावफ अरघंडीवाल ने कहा, "वे लड़ाई नहीं
करना चाहते हैं - लेकिन उनके पास कोई विकल्प नहीं है। ईरान में दर्जन या
अधिक कमांडो छिपे हैं जो तालिबान शासन के बाद अफगानिस्तान छोड़कर भाग गए थे
लेकिन अभी भी उनके परिवारवाले अफगानिस्तान में फंसे हैं।" अब्दुल कहते
हैं, "वे मुझसे पूछते हैं, 'मुझे कोई समाधान दें? क्या करे? अगर हम वापस
अफगानिस्तान गए तो तालिबान हमें मार डालेगा।”
वैगनर ग्रुप कर रहा भर्ती, दिया जा रहा लालच
अरघंडीवाल ने कहा कि भर्ती का नेतृत्व रूसी भाड़े के बल वैगनर ग्रुप ने
किया था। तालिबान के सत्ता संभालने से पहले अंतिम अफगान सेना प्रमुख
हिबतुल्लाह अलीजई ने कहा कि इस प्रयास में एक पूर्व अफगान विशेष बल कमांडर
द्वारा भी मदद की जा रही थी जो रूस में रहता था और भाषा बोलता था। भर्ती के
लिए अफगान सैनिकों को तरह-तरह के लालच दिए जा रहे हैं। जिसमें 1500 डॉलर
प्रतिमाह सैलरी और परिवारवालों की सुरक्षा भी शामिल है।
अमेरिकी सैनिकों संग प्रशिक्षित
रूस जिन अफगान सैनिकों को अपनी सेना में भर्ती कर रहा है, ये सभी अमेरिकी
सेना के साथ प्रशिक्षित हैं। यह उस वक्त की बात है जब अमेरिकी सेना तालिबान
के खिलाफ अफगानिस्तान में मौजूद थी। इन्होंने अमेरिकी सैनिकों के साथ
तालिबानियों के खिलाफ जंग लड़ी थी लेकिन, हार के बाद इन्हें अफगानिस्तान से
भागना पड़ा और ईरान समेत कई जगहों पर छिपना पड़ा।
युद्ध पलटने में माहिर और भयंकर लड़ाके
अफगानिस्तान में सेवा देने वाले एक सेवानिवृत्त सीआईए अधिकारी माइकल मुलरॉय
का कहना है कि ये अफगान कमांडो स्पेशली ट्रैंड हैं। ये वे भयंकर लड़ाके
हैं जो पलभर में दुश्मनों की सेना में तबाही मचाकर परिणाम को पलट सकने में
काबिल हैं। मैं नहीं चाहता कि वे यूक्रेन के खिलाफ जंग में उतरें।"