मोदी, राहुल, अब्दुल्ला और मुफ्ती... जम्मू-कश्मीर चुनाव नतीजों का इन पर कैसे पड़ेगा असर

Updated on 06-10-2024 01:20 PM
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आने वाले हैं और सबकी निगाहें इस पर टिकी हैं कि कौन बाजी मारेगा। एग्जिट पोल के नतीजे नेशनल कॉन्फ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन को आगे बता रहे हैं, लेकिन साथ ही यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि पीडीपी सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हालांकि पिछले कुछ समय से एग्जिट पोल के नतीजे चुनावी नतीजों की सही भविष्यवाणी करने में असफल रहे हैं, इसलिए इन नतीजों को पूरी तरह से सच मान लेना जल्दबाजी होगी। लगभग एक दशक बाद 18 सितंबर से 1 अक्टूबर, 2024 के बीच जम्मू कश्मीर में फिर से चुनाव हुए।

इनके लिए नतीजे क्या मायने रखते हैं

ये चुनाव राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे। कई सालों से जम्मू-कश्मीर का राजनीतिक परिदृश्य अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवारों के प्रभुत्व वाले क्षेत्रीय दलों के इर्द-गिर्द घूमता रहा है तो वहीं बीजेपी और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियां भी अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश करती रही हैं। जैसे-जैसे जम्मू-कश्मीर चुनाव नतीजों का दिन करीब आ रहा है राजनीतिक विश्लेषक इस बात का बारीकी से विश्लेषण कर रहे हैं कि परिणाम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी, NC के उमर अब्दुल्ला और पीडीपी की इल्तिजा मुफ्ती जैसी प्रमुख हस्तियों के लिए नतीजे क्या मायने रखते हैं।

पीएम मोदी के सामने कैसी चुनौती

प्रधानमंत्री मोदी के लिए जम्मू-कश्मीर चुनाव एक चुनौती और एक अवसर दोनों हैं। 2019 में बीजेपी सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करना एक ऐतिहासिक क्षण था जिसने राज्य के विशेष दर्जे को बदल दिया और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया। यह कदम बीजेपी के लिए चर्चा का एक प्रमुख विषय रहा है, जिसने इसे राष्ट्रीय एकीकरण और सुरक्षा की दिशा में एक कदम के रूप में चित्रित किया है। चुनाव परिणाम इस बात की परीक्षा होंगे कि जम्मू-कश्मीर के लोग भाजपा के विकास और सुरक्षा के दावे को स्वीकार करते हैं या स्थानीय मुद्दे राष्ट्रीय बयानबाजी पर भारी पड़ते हैं।
बीजपी का मजबूत प्रदर्शन मोदी की रणनीति को मान्यता देगा और एक ऐसे नेता के रूप में उनकी छवि को मजबूत करेगा जो वादों को पूरा करता है। दूसरी ओर खराब परिणाम आलोचकों को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उर्जा दे सकता है, जो तर्क देते हैं कि इस कदम से जम्मू-कश्मीर के लोगों को वादे के अनुसार लाभ नहीं हुआ है।

नतीजे पक्ष में आए तो राहुल गांधी होंगे और मजबूत

कांग्रेस और विशेष रूप से राहुल गांधी के लिए चुनाव नतीजे एक महत्वपूर्ण संकेत देंगे कि पार्टी खोई हुई जमीन हासिल करने में सक्षम है या नहीं। कांग्रेस का पारंपरिक रूप से जम्मू-कश्मीर में दबदबा रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उसने अपनी उपस्थिति खो दी है। राहुल गांधी पूर्ण राज्य का दर्जा जो समाप्त किया गया उसको लेकर मुखर रहे हैं।

कांग्रेस के अच्छे नतीजे से राहुल गांधी को राष्ट्रीय स्तर पर और अधिक मजबूती दिलाने का काम करेंगे। इसके विपरीत कमजोर प्रदर्शन कांग्रेस को फिर से जीवंत करने की उनकी क्षमता के बारे में सवाल उठा सकता है। कांग्रेस के लिए यह चुनाव सिर्फ सीटें हासिल करने के बारे में नहीं है बल्कि जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में प्रासंगिकता बनाए रखने के बारे में भी है।

अब्दुल्ला परिवार के लिए अहम लड़ाई

अब्दुल्ला परिवार के लिए, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) का नेतृत्व करता है, जम्मू-कश्मीर चुनाव उनके क्षेत्रीय प्रभाव का परीक्षण करेंगे। फारूक अब्दुल्ला और उनके बेटे उमर अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली यह पार्टी दशकों से जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी रही है। उन्होंने अनुच्छेद 370 पर भाजपा के रुख का विरोध किया है और जम्मू-कश्मीर के राज्य का दर्जा बहाल करने का आह्वान किया है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि कांग्रेस-NC गठबंधन लोगों को कितना समझा पाया है।

यदि NC अच्छा प्रदर्शन करने में कामयाब रहती है, तो यह जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य में अब्दुल्ला की स्थिति को और मजबूत बनाएगा। फारूक अब्दुल्ला भाजपा का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय दलों के बीच एकजुट मोर्चा बनाने के बारे में मुखर रहे हैं और एक मजबूत परिणाम इन प्रयासों को बल देगा। जूनियर अब्दुल्ला भी इस बार मुख्यमंत्री पद की तलाश में हो सकते हैं। हालांकि कमजोर प्रदर्शन पारंपरिक सत्ता से अलग जन भावना में बदलाव का संकेत दे सकता है।

पीडीपी की लोकप्रियता कितनी चुनाव नतीजों से होगा तय

महबूबा मुफ्ती और उनकी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) को भी इसी तरह की परीक्षा का सामना करना पड़ रहा है। इस साल महबूबा की बेटी इल्तिजा मुफ्ती का भी आगाज हुआ है, जो दक्षिण कश्मीर की अपनी मजबूत सीट बिजबेहरा से परिवार का नेतृत्व कर रही हैं। एक बार गठबंधन सरकार में बीजेपी की सहयोगी रही पीडीपी ने न केवल खुद को राष्ट्रीय पार्टी से दूर किया बल्कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की मुखर आलोचना की है।
हालांकि पिछले कुछ समय में पार्टी की लोकप्रियता कम हुई है, और यह चुनाव तय करेगा कि क्या मुफ्ती परिवार अपना खोया हुआ प्रभाव वापस पा सकता है। महबूबा मुफ्ती के लिए चुनाव परिणाम पीडीपी के भविष्य का फैसला करने में महत्वपूर्ण होंगे। अच्छे नतीजे परिवार को इस क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति के रूप में फिर स्थापित करेगा और खराब प्रदर्शन जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के प्रभुत्व के अंत का संकेत भी दे सकता है।

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