नई दिल्ली। अगर किसी भी चीज पर आपकी निर्भरता हद से ज्यादा बढ़ जाती है तो वह आपका आसानी से इस्तेमाल कर सकता है। भारत और चीन के मामले भी कुछ इसी तरह हैं। फार्मा प्रॉडक्ट के मामले में भारत की चीन पर निर्भरता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि वह अब इसका गलत फायदा उठाने लगा है। खासकर लद्दाख गलवान घाटी घटना के बाद उसने आक्रामक रुख अपना लिया है। भारत हर साल लगभग 39 अरब डॉलर का दवा तैयार करता है। दवा तैयार करने के जरूरी स्टार्टिंग मटीरियल, एपीआई के लिए भारत बहुत हद तक चीन पर निर्भर है। भारतीय कंपनियां 70 फीसदी एपीआई की जरूरत चीन से आयात कर पूरा करती हैं। कुछ दवाओं के लिए यह 90 फीसदी तक है। वित्त वर्ष 2019 में भारत ने चीन से करीब 17,400 करोड़ (2.5 अरब डॉलर) का एपीआई आयात किया था। कॉमर्स ऐंड इंडस्ट्री मिनिस्ट्री के अंतर्गत आने वाले फार्मासूटिकल एक्सपोर्ट प्रोमोशन काउंसिल के चेयरमैन दिनेश दुआ ने गलवान घाटी घटना को लेकर कहा कि चीन हम पर दो तरह से हमला कर रहा है। एक तरफ वह सीमा पर हमला कर रहा है और दूसरी तरफ भारत की निर्भरता का गलत फायदा उठाने लगा है। एपीआई की कीमत में तेजी से दवाओं की कीमत बढ़ने लगी है। उन्होंने कहा कि पेरासिटामोल की कीमत में 27 फीसदी, सिप्रोफ़लोक्सिन की कीमत में 20 फीसदी और पेन्सिलीन जी की कीमत में 20 फीसदी की तेजी आई है। हर तरह के फार्मा प्रॉडक्ट की कीमत में करीब 20 फीसदी की तेजी दर्ज की गई है। यह स्थिति गंभीर इसलिए है कि क्योंकि वॉल्यूम के लिहाज से भारत विश्व का तीसरा सबसे बड़ा दवा उत्पादक है। भारत की प्रमुख दवा बनाने वाली कंपनियां जैसे डॉक्टर रेड्डी लैब, लुपिन, ग्लेनमार्क फार्ममा, मायलन, जायडस कैडिला और पीफाइजर जैसी कंपनियां API के लिए मुख्य रूप से चीन पर निर्भर हैं। भारत 53 महत्वपूर्ण फार्म API का 80-90 फीसदी आयात चीन से करता है।