भोपाल । राजधानी में तीन साल बाद भी घरों को डिजिटल पहचान पहचान नहीं मिल सकी है। नगर निगम द्वारा शहर के घरों, संस्थानों को यूनिक पहचान देने की योजना बनाई थी।इसके लिए भोपाल स्मार्ट सिटी ने तीन करोड़ रुपए रुपए का ठेका हैदराबाद की जीपर कंपनी को दिया था। यूनिक स्मार्ट एड्रेसिंग सॉल्यूशन के तहत शहर के घरों व संस्थानों में डिजिटल डोर नंबर जारी करने व लगाए जाने थे। डिजिटल एड्रेस के लिए तय किए गए मापदंड के अनुसार संबंधित कंपनी को घरों व संस्थानों के बाहर विशेष प्लेट लगाई जानी थी। इसके लिए संबंधित कंपनी को कुछ अग्रिम भुगतान भी किया जा चुका है। इसके बावजूद अब तक घरों को डिजिटल पहचान नहीं मिल सकी है। डिजिटल डोर नंबर नौ डिजिट का होगा। वह अल्फा न्यूमेरिक सिक्वेंशियल स्मार्ट एड्रेस कोड है।
दावा है कि इसे जियो को-ऑर्डिनेट्स की मदद से तैयार किया जाएगा। इसके लिए संबंधित पॉइंट, रोड, संपत्ति व फ्लोर की स्थिती का उपयोग किया जाएगा। डिजिटल बैस मेप के साथ सड़कों के नेटवर्क की मदद ली जाएगी। दावा है कि लेटेस्ट सैटेलाइट इमेजनरी का प्रयोग इसमें किया जाएगा, ताकि पता ढूढने में किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो। भोपाल प्लस एप या अन्य एप पर ये कोड दर्ज करते ही पूरी जानकारी मिल जाएगी। अधिकारियों के अनुसार प्रत्येक घर को नए यूनिक नंबर के साथ बारकोड दिया जाना था। जो भवन के नंबर प्लेट पर अंकित होगा।
इससे नगर निगम का राजस्व भी बढ़ता। क्योकि हर घर को टैक्स के दायरे में लाना सुनिश्चित हो जाता। नगर निगम अधिकारियों की मानें तो एक से डेढ़ लाख घर टैक्स के दायरे से बाहर हैं। वे निगम की सुविधाएं पूरी लेते हैं, लेकिन कीमत नहीं चुकाते हैं। हालांकि बारकोड में कोई भी गोपनीय जानकारी नहीं होगी। केवल भूखंड का क्षेत्रफल, कवर्ड एरिया, गृह स्वामी का नाम, घर का वार्षिक किराया मूल्य (एआरवी), बिजली कनेक्शन नंबर, घर की तस्वीर, उसका यूनीक नंबर और कुछ अन्य जानकारियां फीड की जाएंगी। ज्यादातर जानकारियां सरकारी विभागों के उपयोग की होंगी। इसके लिए नगर निगम से हाउस टैक्स, सीवर टैक्स और वाटर टैक्स का डेटा लिया गया है। विद्युत निगम से बिजली कनेक्शनों का ब्योरा ले लिया गया है।