लखनऊ । संयुक्त किसान मोर्चे और टिकैत के नेतृत्व वाली भाकियू की किसानों को लेकर नीतिगत मुद्दों पर भविष्य में सामने आने वाली रणनीति को नए गुट से भरपूर चुनौती मिलेगी। भाकियू के अध्यक्ष नरेश टिकैत व राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत के कथित सियासी दांवपेंच अब और परवान चढ़ने में दुश्वारियां पेश आएंगी। यही नहीं टिकैट बंधुओं द्वारा खुलेतौर पर भाजपा को निशाने पर लेते हुए दूसरे विपक्षी दलों के नेताओं के साथ मंच साझा करने की ‘राजनीति’ का मुखर विरोध भी हो तो हैरत नहीं। भारतीय किसान यूनियन में पड़ी फूट की एक बड़ी वजह न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) गारंटी कानून को लेकर गहराया मतभेद भी रहा। रविवार को लखनऊ में घोषित हुए संगठन के नए गुट के नेताओं का मानना है कि अगर एमएसपी गारंटी कानून बन जाता तो यह किसानों के लिए एक बड़ा सुरक्षा कवच होता। नया संगठन खुद को केंद्र और प्रदेश की सरकारों से किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए सड़कों पर आन्दोलन करने के बजाए संवाद कायम कर मसलों का हल निकलवाने का पक्षधर है। यह बात दीगर है कि खुद को अराजनीतिक भी कह रहे इस नए संगठन को किसी न किसी के पक्ष व विपक्ष में रहना ही पड़ेगा। सरकार अथवा सत्तारूढ़ दलों से संवाद के दौरान उसकी रणनीति ही उसका चरित्र तय करेगी। राकेश टिकैत तो पहले ही कह चुके हैं कि यह केंद्र सरकार के इशारे पर प्रदेश सरकार के दबाव में बनाया गया अलग गुट है यानी अब एक तरफ नरेश टिकैत की अगुवाई वाली भारतीय किसान यूनियन किसान संयुक्त मोर्चे के साथ किसान आन्दोलन खड़े करेगा। दूसरी तरफ राजेश सिंह चौहान की अगुवाई में यह नया संगठन सरकारों से बातचीत कर मसले सुलझाएगा। ऐसे में दोनों गुटों के टकराव के चलते सियासी पैंतरेबाजी होना तय माना जा रहा है। फिलहाल यह नया संगठन केन्द्र से एमएसपी गारंटी कानून और प्रदेश सरकार से सिंचाई की बिजली मुफ्त दिए जाने के भाजपा के चुनावी वादे को पूरा करवाने पर संवाद शुरू करेगा। इसके साथ ही केन्द्र सरकार से नया गुट कृषि कानूनों पर विचार के लिए बनने वाली कमेटी में प्रतिनिधित्व की मांग करेगी।