इस्लामाबाद । पाकिस्तान में सत्तारूढ़ वर्तमान सरकार पर सेना के प्रभाव की चर्चा की जाती रहती है वह अब पूरी तरह सच साबित होती दिख रही है। दरअसल, अब सरकारी संस्थाओं के खिलाफ उठने वाली आवाजों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। इस संबंध में पाकिस्तान की कैबिनेट ने शनिवार को एक प्रस्ताव पारित किया। इसके तहत अब टीवी चैनलों पर सरकारी संस्थानों की आलोचना करने पर पांच साल तक की सजा हो सकती है। इसमें सेना और न्यायपालिका जैसी संस्थाएं शामिल हैं।
खबरों के मुताबिक पाकिस्तान सरकार ने एक अध्यादेश के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक क्राइम्स प्रिवेंशन एक्ट में संशोधन किया है। रविवार को पाकिस्तान के राष्ट्रपति आरिफ अल्वी ने इस पर हस्ताक्षर कर दिए जिसके बाद अब यह कानून बन चुका है। खबरों में सूत्रों के हवाले से कहा कि कैबिनेट ने चुनाव आयोग की आचार संहिता के नियमों में भी बदलावों को मंजूरी दी।
नए कानून के मुताबिक अब सांसदों और मंत्रियों को अपने पसंदीदा उम्मीदवार के लिए देशभर में चुनाव प्रचार करने की अनुमति होगी। कैबिनेट की मंजूरी के बाद पाक राष्ट्रपति ने दोनों कानूनों पर हस्ताक्षर कर दिए। इन कानूनों के अस्तित्व में आने के बाद पाकिस्तान में सरकारी संस्थाओं की आलोचना करने पर पांच साल तक की सजा हो सकती है जो पहले तीन साल थी। इस कानून के तहत आने वाले मामलों की निगरानी हाई कोर्ट करेगा और निचली अदालतों को छह महीने के भीतर मामले को समाप्त करना होगा।
पाकिस्तान के विपक्षी दलों ने इस अध्यादेशों का विरोध किया है। पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज के नेता इरफान सिद्दीकी ने कहा कि सरकार आलोचनाओं को दबाने के साथ अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा कि अब प्रधानमंत्री और मंत्री चुनाव प्रचार में हिस्सा लेंगे और उनकी शक्तियों से चुनावों पर असर पड़ेगा। विशेषज्ञों का कहना है कि पाकिस्तान सरकार आलोचना को दबाकर अपनी छवि को सुधारना चाहती है लेकिन इससे उसकी छवि पर और ज्यादा नकारात्मक असर पड़ेगा।