भोपाल । राजधानी के हमीदिया अस्पताल में नाक-कान एवं गला विभाग 3 विशेषज्ञ होने के बाद भी श्रवण बाधित लोग परेशान है, क्योंकि उनका यहां इलाज नहीं हो पा रहा है। यहां पर काक्लियर इंप्लांट के लिए आने वाले श्रवण बाधित बच्चों को परेशान होना पड रहा है। इन बच्चों को काक्लियर इंप्लांट नहीं लगाया जा रहा है। इसका कारण स्पीच थैरेपिस्ट के पद पर नियमित कर्मचारी का नहीं होना है। संविदा थैरेपिस्ट से ही कई सालों से काम चलाया जा रहा है। कई साल तक तो कोई स्पीच थैरेपिस्ट ही हमीदिया में नहीं रहा।
इसके बाद मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने आपत्ति की तो संविदा आधार पर थैरेपिस्ट की नियुक्ति तो कर ली गई, लेकिन कई सुविधाएं इसलिए शुरू नहीं की जा सकी कि अगर थैरेपिस्ट बीच में अचानक चला गया तो काम बंद हो जाएगा। जानकारी के अनुसार, कई बच्चों के कान के मध्य भाग में मौजूद काक्लिया के खराब होने की वजह से उन्हें सुनाई नहीं देता है। इसका इलाज काक्लियर इप्लांट लगाना है। इसमें कान के ऊपर मस्तिष्क में एक डिवाइस लगाई जाती है। उससे एक तार जोड़कर कान के मध्य भाग तक पहुंचाया जाता है।
जिससे मस्तिष्क को संकेत मिलने लगते हैं और बच्चों को सुनाई देने लगता है। निजी अस्पतालों में काक्लियर इंप्लांट्स लगाने का खर्च 8 लाख रुपए तक है। हमीदिया में इसका इलाज कराने पर मरीज को अधिक से अधिक डेढ़ लाख रुपए ही खर्च करने पड़ेंगे क्योंकि डिवाइस के अलावा अन्य खर्च यहां पर नहीं लगेंगे। अस्पताल के नाक कान एवं गला रोग विभाग में इसकी सर्जरी के लिए सभी उपकरण मौजूद हैं। पिछले साल अत्याधुनिक माइक्रोस्कोप भी आ गया है, लेकिन कॉलेज प्रबंधन की छोटी सी उदासीनता की वजह से लोगों को इसका फायदा नहीं मिल पा रहा है। बड़ी बात यह है कि मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के तहत इसका इलाज निजी अस्पतालों में कराने के लिए सरकार हर बच्चे पर करीब आठ लाख रुपए खर्च कर रही है। हमीदिया अस्पताल में यह सुविधा शुरू हो जाए तो सरकार की यह राशि बचेगी।