नई दिल्ली । भारत की शीर्ष वैक्सीन निर्मात कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के मुखिया (सीईओ) अदार पूनावाला ने कोविशील्ड को सर्वश्रेष्ठ वैक्सीन बताते हुए कहा कि यह मॉर्डना और फाइजर तुलना में लंबी और बेहतर इम्युनिटी देती है।
पूनावाला ने कहा कि अमेरिका और अन्य विकसित देशों में जो एमआरएनए तकनीक पर जो वैक्सीन दी जा रही है उसके बाद भी वहां पिछले कुछ महीनों से कोरोना संक्रमण बढ़ा है। उन्होंने कहा कि जो देश फाइजर, या मॉडर्ना की वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहे हैं वहां पिछले कुछ समय में नए केस बढ़े हैं।
पूनावाला ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सरकार जल्द ही बच्चों को दिए जाने वाले कोवावैक्स वैक्सीन को जल्द ही मंजूरी मिलेगी। उन्होंने कहा कि इस मंजूरी के बाद बच्चों को वैक्सीन देने की भारत की मुहिम को तेजी मिलेगी।
अपने एक इंटरव्यू में पूनावाला ने कहा कि कोविशील्ड से मिलने वाली लंबी इम्युनिटी की वजह से ही शायद विशेषज्ञों ने दूसरे डोज के बीच 9 महीने का गैप रखने का फैसला किया था। हालांकि, एमआरएनए वैक्सीन को अच्छा नहीं बताना सही नहीं होगा लेकिन एक हकीकत ये भी है कि हर तीन या चार महीने बाद आपको इसकी दूसरी डोज लेनी होती है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने दूसरा बूस्टर डोज लिया है।
इसका मतलब ये हुआ कि अमेरिकी राष्ट्रपति का ये चौथा डोज है। पूनावाला ने कहा कि अब उन्हें ये पता नहीं है कि क्या कहें या फिर उसके बाद क्या करें। तो उन्हें किसी न किसी समय ये मानना होगा कि उनकी वैक्सीन से केवल दो-तीन महीने ही इम्युनिटी मिलती है। उन्होंने कहा कि तीन डोज के बाद एक वैक्सीन को 5-10 साल की इम्युनिटी देनी चाहिए।
एमआरएनए तकनीक से बने टीके में वायरस के जिनेटिक कोड (आरएनए) के एक छोटे हिस्से का इस्तेमाल कर शरीर में वायरस के हमले के खिलाफ इम्यूनिटी पैदा की जाती है। इसमें इंसानी कोशिकाओं के लिए निर्देश तय कर दिए जाते हैं कि उन्हें किस तरह के प्रोटीन बनाने हैं जो कि वायरस की कॉपी लगें और शरीर उनको पहचान लें।
बाकी वैक्सीन में जहां वायरस का हिस्सा या मूल वायरस का इस्तेमाल होता है, वहीं एमआरएनए वैक्सीन में किसी असल वायरस का इस्तेमाल नहीं होता। कोवैक्सिन जैसे टीके में मूल वायरस का इस्तेमाल होता है। वहीं कोविशील्ड चिंपैंजी से लिए गए एडिनो वायरस से बनी है।