मुश्किल समय में बुजुर्गों से ज्यादा युवा भगवान को याद करते हैं। पूजा-पाठ से लेकर मन्नतों और मिन्नतों का दौर शुरू हो जाता है। चर्च ऑफ इंग्लैंड के सर्वे में यह बात सामने आई है कि युवा पीढ़ी में ध्यान और अध्यात्म के प्रति रुझान पिछली पीढ़ी से कहीं ज्यादा बढ़ा है, जिस वजह से वह ज्यादा आस्थावान हो गई है।
18 से 34 साल के लोग ज्यादा धार्मिक
इस
सर्वे में 18 से 34 साल और 55 साल से ज्यादा उम्र के लोगों के बीच पिछले
एक महीने में ईश्वर के प्रति उनके रवैये पर शोध किया गया है। इसमें पता चला
कि 18 से 34 साल तक के एक तिहाई यानी करीब 33% लोगों ने पिछले महीने
धार्मिक स्थलों में जाकर प्रार्थना की, जबकि 55 साल से ज्यादा उम्र के
सिर्फ 25% लोग ही प्रार्थना करने आए।
सावंता कोमरेस के सर्वे में पता चला कि 56% युवाओं ने किसी न किसी समय पर ईश्वर से प्रार्थना की है, जबकि 55 साल से ज्यादा के सिर्फ 41% लोगों ने प्रार्थना करने की बात स्वीकार की। यॉर्क के आर्कबिशप मोस्ट रेव स्टीफेन कॉटरेल ने कहा कि चारों ओर अनिश्चितता है।
आध्यात्म के पीछे ग्लोबल वार्मिंग, महंगाई जैसी वजहें
ग्लोबल
वार्मिंग, महंगाई, रूस-यूक्रेन जंग, सूखा जैसी वजहें उन्हें ईश्वर की शरण
में ले आई हैं। जब इस वक्त हम कई तरह की समस्याओं में जी रहे हैं, तो ईश्वर
की शरण में ही शांति मिलेगी। ईश्वर की शरण में जाना हमारी जिंदगी में बड़े
बदलाव ला सकता है। जबकि दूसरे धर्म गुरुओं का कहना है कि युवा पीढ़ी पिछली
पीढ़ी से कहीं ज्यादा आध्यात्मिक है।
यह सर्वे ऐसे समय में आया है जब तमाम चर्च बंद होते जा रहे हैं। पिछले एक दशक में, साल 2010 से 2019 तक में ही इंग्लैंड में 423 चर्च हमेशा के लिए बंद हो गए। चर्च ऑफ इंग्लैंड के वेरी रेव्ड डॉ. स्टीफेन हैंस कहते हैं कि इस सर्वे के नतीजे आम धारणा को बदल देते हैं। अब तक समझा जाता रहा है कि पढ़े-लिखे युवाओं को धर्म में विश्वास नहीं है, लेकिन ऐसा नहीं है।
कोरोना के बाद की मुसीबतों ने युवाओं को धार्मिक बनाया
कोरोना
महामारी की वजह से लोगों के बीच अकेलापन बढ़ा है। ऐसे में उन्हें किसी के
सहारे या साथ की जरूरत थी, जो उन्हें ध्यान और ईश्वर उपासना की ओर ले जाए।
रामायण धारावाहिक में सीता का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री दीपिका
चिकालिया टोपीवाला ने एक इंटरव्यू में कहा कि भारत का एक बड़ा हिस्सा
‘प्रकृति और आध्यात्मिकता’ की ओर बढ़ेगा।