अमेरिका और चीन की लड़ाई से तेल में हो गया बड़ा खेल, भारत की आने वाली है मौज
Updated on
09-04-2025 05:19 PM
नई दिल्ली: कच्चे तेल की कीमत में आज भारी गिरावट आई है और यह चार साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। दुनिया की दो सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देशों अमेरिका और चीन के बीच चल रहे ट्रेड वॉर गहराने से क्रूड की यह दुर्गति हुई है। इसकी एक वजह यह भी है कि सप्लाई बढ़ने से कीमत गिर रही है। पिछले पांच दिनों से तेल के दाम लगातार गिर रहे हैं। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चीन से आने वाले सामान पर बहुत ज्यादा टैक्स लगा दिया है। इससे डर है कि दुनिया में ट्रेड कम हो जाएगा और तेल की मांग भी कमी आएगी। अमेरिका चीन का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है जबकि चीन अमेरिका का दूसरा बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है। इससे समझा जा सकता है कि इन दोनों देशों के लिए एकदूसरे की क्या अहमियत है।
दोपहर 12 बजे ब्रेंट क्रूड $2.07 यानी 3.30 फीसदी की गिरावट के साथ $60.75 प्रति बैरल रह गया। इसी तरह U.S. वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट (WTI) क्रूड ऑयल का दाम $2.17 गिरकर $57.41 हो गया। यह 3.64% की गिरावट है। ब्रेंट का दाम मार्च 2021 के बाद सबसे कम है और WTI का दाम फरवरी 2021 के बाद सबसे कम है। रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक व्हाइट हाउस के एक अधिकारी ने बताया कि अमेरिका चीन से आने वाले सामान पर 104% टैक्स लगाएगा। ट्रंप ने कहा था कि अगर चीन अमेरिकी सामान पर लगाए गए टैक्स को नहीं हटाता है तो वह और ज्यादा टैक्स लगाएंगे।
चीन-अमेरिका की लड़ाई
चीन ने कहा है कि वह अमेरिकी धमकियों के आगे नहीं झुकेगा। ट्रंप ने कहा था कि अगर चीन अमेरिकी सामान पर लगाए गए 34% टैक्स को नहीं हटाता है तो वह चीन के सामान पर 50% और टैक्स लगाएंगे। ट्रंप ने हाल में करीब 60 देशों पर टैरिफ लगाने की घोषणा की थी। चीन पर 34 फीसदी टैरिफ लगाया गया था जो पहले लगाए गए 20 फीसदी टैरिफ के अतिरिक्त था। इस तरह चीन पर कुल टैक्स 54 फीसदी हो गया। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी सामान पर 34 फीसदी टैरिफ लगा दिया था। जानकारों का कहना है कि चीन का आक्रामक रुख दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के बीच जल्दी समझौता होने की संभावना को कम करता है, जिससे दुनिया भर में आर्थिक मंदी का डर बढ़ रहा है। इसका मतलब है कि चीन और अमेरिका के बीच लड़ाई से दुनिया में आर्थिक मंदी आ सकती है। इससे दुनिया में तेल की खपत कम हो सकती है। तेल के दाम गिरने का एक और कारण है। ओपेक+ देशों ने मई में 411,000 बैरल प्रति दिन उत्पादन बढ़ाने का फैसला किया है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इससे तेल की सप्लाई बढ़ जाएगी और दाम गिर जाएंगे।
भारत का फायदा
Goldman Sachs का अनुमान है कि दिसंबर 2026 तक ब्रेंट का दाम $55 प्रति बैरल और WTI का दाम $51 प्रति बैरल तक गिर सकता है। तेल के दाम गिरने से रूस के ESPO ब्लेंड तेल का दाम $60 प्रति बैरल के पश्चिमी देशों द्वारा तय की गई सीमा से नीचे चला गया। ऐसा पहली बार हुआ है। यह भारत के लिए अच्छी खबर है क्योंकि भारत अब सबसे ज्यादा तेल रूस से ही मंगाता है। भारत अपनी जरूरत का करीब 87 फीसदी तेल आयात करता है। अब तेल की कीमत गिरने से कंपनियों का रिफाइनिंग मार्जिन बढ़ेगा और इसका फायदा आखिरकार उपभोक्ताओं को मिलेगा। इससे आने वाले दिनों में पेट्रोल और डीजल की कीमत में कमी आ सकती है।
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