भोपाल । मप्र के शासकीय अस्पतालों के लिए डाक्टरों के 632 पदों की भर्ती में 495 चिकित्सा अधिकारी ही मिले। इनमें भी 94 डॉक्टरों ने ज्वाइन ही नहीं किया। ऐसे में शासन ने इनकी नियुक्ति निरस्त कर दी है। प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी दूर नहीं हो पा रही है।
फरवरी 2021 में 632 पदों पर लोक सेवा आयोग के जरिए भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी। साक्षात्कार के बाद 495 चिकित्सकों की चयन सूची जारी की गई, लेकिन इनमें 401 ने ही ज्वाइन किया। ऐसे में शासन ने ज्वाइन नहीं करने वाले 94 चिकित्सा अधिकारियों की नियुक्ति को पिछले हफ्ते निरस्त कर दिया है। उनकी जगह अनुपूरक सूची में शामिल 64 चिकित्सकों को नियुक्ति का मौका दिया गया है।
इस सूची में शामिल चिकित्सकों से उनकी पसंद के अस्पताल के लिए 27 फरवरी तक ऑनलाइन विकल्प मांगा गया है। बता दें कि जिन डॉक्टरों की नियुक्ति निरस्त की गई है, उनकी पदस्थापना सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र , सिविल अस्पताल और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में की गई थी।
2010 में मेडिकल ऑफीसर्स के 1090 पदों के विरुद्ध 570 डॉक्टर ही मिले थे। इसके बाद करीब 200 डॉक्टरों ने पीजी करने या फिर मनचाही पोस्टिंग नहीं मिलने पर नौकरी छोड़ दी। 2013 में 1416 पदों पर भर्ती में 865 डॉक्टर मिले, लेकिन करीब 200 ने ज्वाइन नहीं किया और उतने ही नौकरी छोड़कर चले गए। यानी करीब 400 डॉक्टर ही मिले। इसी तरह से 2015 में 1271 पदों में 874 डॉक्टर मिले हैं। इनमें भी 218 डॉक्टरों ने ज्वाइन नहीं किया। कुछ पीजी करने चले गए और कुछ ने नौकरी छोड़ दी।
करीब 400 डॉक्टर ही मिल पाए। 2015 में ही 1871 पदों के लिए भर्ती शुरू हुई थी। मार्च 2017 में साक्षात्कार के बाद रिजल्ट जारी किए गए। इस बारे मेंमप्र मेडिकल ऑफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. देवेन्द्र गोस्वामी का कहना है कि दूसरे राज्यों के मुकाबले मप्र में वेतन कम है। डॉक्टरों में असुरक्षा की भावना है, इसलिए वह ग्रामीण क्षेत्र के अस्पतालों में जाना नहीं चाहते। पीएससी से भर्ती में एक साल लग जाते हैं। सरकार को चाहिए कि मेडिकल कॉलेजों से निकलने वाले डॉक्टरों को सीधे नियुक्ति दे।