मुझे लगता है मैंने व्यवस्था को उससे बेहतर स्थिति में छोड़ा है... रिटायरमेंट पर बोले CJI डीवाई चंद्रचूड़

Updated on 11-11-2024 01:24 PM
नई दिल्ली: जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ रविवार को अपने पद से रिटायर हो गए। उनकी जगह आज न्यायमूर्ति संजीव खन्ना सीजेआई पद की शपथ लेंगे। रिटायरमेंट के बाद जस्टिस चंद्रचूड़ कई मुद्दों पर खुलकर अपनी राय रख रहे हैं। उन्होंने हमारे सहयोगी टाइम्स ऑफ इंडिया को इंटरव्यू दिया। आखिरी इंटरव्यू में उन्होंने नफरत फैलाने वाले भाषण, आरक्षण, कार्यपालिका-न्यायपालिका संबंधों और जजों के वेतन जैसे कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर खुलकर बात की। उन्होंने एक बात और कही कि मुझे लगता है कि मैंने व्यवस्था को पहले से बेहतर स्थिति में छोड़कर जा रहा हूं, जहां वह पहले था। डी वाई चंद्रचूड़ के इंटरव्यू के कुछ अंश-

पहले से बेहतर की व्यवस्था- चंद्रचूड़

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आठ साल से ज्यादा समय तक सुप्रीम कोर्ट के जज और पिछले दो साल तक CJI के रूप में अपनी सेवाएं दीं। उन्होंने TOI को दिए एक खास इंटरव्यू में कहा कि उन्हें लगता है कि उन्होंने व्यवस्था को उससे बेहतर बनाया है जितना उन्हें मिला था। उन्होंने दिव्यांग अधिकारों, सूचना के अधिकार, आर्थिक संघवाद और लिंग तथा जातिगत भेदभाव के संदर्भ में समान अवसर के सिद्धांत पर दिए गए अपने फैसलों का जिक्र किया। उन्होंने यह भी कहा कि सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के साथ नफरत फैलाने वाले भाषणों का असर कई गुना बढ़ गया है और ये लोगों के मन और भावनाओं पर गहरा असर डालते हैं।

भारत का लोकतंत्र खतरे में है?

इस सवाल का जवाब देते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि लोकतंत्र के कोई समान घटक नहीं हैं जिन्हें हर देश को यह सुनिश्चित करने के लिए पूरा करना चाहिए कि वह 'लोकतांत्रिक' रूप से काम कर रहा है। भारत में लोकतांत्रिक कामकाज का आधार, जहां हम अपनी अनूठी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, अन्य देशों में लोकतंत्र के आधार से अलग है। उन्होंने आगे कहा कि भारत में, हम लोकतंत्र की केवल 'राजनीतिक' समझ को नहीं मानते हैं। चुनाव या प्रतिनिधित्व से संबंधित मुद्दे जैसे मतदान का अधिकार या सीमा निर्धारण, लोकतांत्रिक शासन का हिस्सा हैं।

हम सामाजिक लोकतंत्र में भी विश्वास करते हैं, अर्थात कुछ न्यूनतम सामाजिक कारकों का अस्तित्व जैसे भेदभाव का अभाव और अवसर की वास्तविक समानता सुनिश्चित करना। लोकतंत्र में संस्थाओं की क्या भूमिका है? संस्थाओं का निर्माण किया जाता है और उन्हें यह सुनिश्चित करने के लिए शक्ति प्रदान की जाती है कि (i) लोकतंत्र के आधारों का उल्लंघन न हो और (ii) लोकतांत्रिक नींव जिन मूल्यों पर टिकी होती है, उन्हें बढ़ावा मिले।

नफरत फैलाने वाला भाषणों पर क्या कहा?

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि मैं बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रबल विश्वासी और समर्थक हूं। संवैधानिक स्वतंत्रता उचित प्रतिबंधों के अधीन है। मेरा यह भी मानना है कि प्रतिबंधों से अधिकार को केवल कागजी अधिकार नहीं रह जाना चाहिए। नफरत फैलाने वाला भाषण चिंता का विषय है। सोशल मीडिया के उदय के साथ इसका प्रभाव अब कई गुना बढ़ गया है।

कीबोर्ड योद्धाओं की संख्या बढ़ती जा रही है जो सिर्फ ध्यान आकर्षित करने और सार्वजनिक रूप से प्रासंगिक बने रहने के लिए अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग करते हुए बातें कहते हैं। आहत करने वाली टिप्पणियों का लोगों के मानस और भावनात्मक स्वास्थ्य पर दूरगामी परिणाम होते हैं। भारत को इसे रोकने के लिए क्या करना चाहिए? राज्य की अपनाई गई विधि को प्रतिबंधों के दायरे में शामिल किया जाना चाहिए। इसका असर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करने वाला नहीं होना चाहिए।

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