भोपाल। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एक मरीज को एचआइवी संक्रमित खून चढ़ाने के मामले की जांच अभी तक अधूरी हैं। इसके अलावा अन्य दो शिकायतों की जांच भी ठीक से नहीं की जा रही है। एम्स से मरीजों से जुड़े कई दस्तावेज ही गायब हैं। ब्लड एवं ट्रासफ्यूजन मेडिसिन विभाग के अतिरिक्त प्राध्यापक डा. प्रतुल सिन्हा के पास भी कुछ दस्तावेज होने की बात कही जा रही है, लेकिन दिक्कत यह है कि वह पिछले तीन महीने से अवकाश पर हैं। उनका कक्ष बंद है। गौरतलब है कि आदमपुर छावनी के रहने वाले एक परिवार ने पीएमओ को शिकायत की थी कि उनकी 10 साल की बच्ची को पिछले साल 11 मार्च को बिना जांचे खून चढ़ा दिया गया था।
इस कारण बच्ची एचआइवी संक्रमित हो गई और बाद में उसकी मौत भी हो गई। इसके अलावा एक अन्य मामले में एक रक्तदाता के एचआइवी संक्रमित होने के बाद भी उसे इसकी जानकारी नहीं देने की शिकायत की गई। वहीं तीसरी शिकायत मरीज को दूसरे समूह का रक्त चढ़ाने की है।
सेंट्रल ड्रग स्टैंडर्ड एवं कंट्रोल आर्गनाइजेशन (सीडीएससीओ) और मप्र के खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम ने भी जांच में पाया था कि इस संस्थान में मरीजों का रिकार्ड ब्लड बैंक के तय मापदंडों के अनुसार संधारित नहीं किया गया है। इसके लिए औषधि प्रशासन की तरफ से एम्स को कारण बताओ नोटिस भी जारी किया गया था। यहां लंबे समय से डाक्टरों के बीच तालमेल ठीक नहीं होने की वजह से भी मरीजों को सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। हालत यह है कि ब्लड बैंक के लाइसेंस का नवीनीकरण तक नहीं कराया गया है। एम्स प्रबंधन की यह लापरवाही यहां इलाज कराने आने वाले मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। इसके बावजूद प्रशासन इसे गंभीरता से नहीं ले रहा है।