अप्रैल माह में दिन का तापमान लगभग सामान्य ही रहा। बीच-बीच में गरज-चमक के साथ कई दिनों तक बेमौसम वर्षा भी हो गई है। ओले के साथ ही बिजली गिरने की घटनाओं में भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी हुई है। मई की शुरुआत में भी गर्मी के तेवर फिलहाल ठंडे बने हुए हैं।
दरअसल, किसानों के साथ ही आम जनजीवन से करीबी रिश्ता रखने वाले मौसम और पर्यावरण को किसी भी राजनीतिक दल ने अपने मुद्दों में शामिल ही नहीं किया है, जबकि दूषित पर्यावरण और बिगड़ रहे मौसम के मिजाज ने लोगों की सेहत के साथ ही अर्थव्यवस्था पर भी प्रहार किया है। पर्यावरणविद और मौसम विज्ञानियों को कहना है कि यदि अभी भी मौसम का मर्म नहीं समझा गया तो आने वाले समय में जीवन के लिए परिस्थितियां काफी भयावह हो सकती हैं।
लक्जरी कारों के काफिले के साथ विभिन्न दलों के नेता इन दिनों भरी दोपहरी में लोकसभा चुनाव जनसंपर्क के लिए सड़कें नापते फिर रहे हैं। कार से उतरते ही चेहरे पर चुहचुहाते पसीने को पोंछते हुए जब आगे बढ़ते हैं तो उनकी निगाहें आसपास किसी पेड़ की तलाश में होती है। बोतल बंद पानी से गला तर करते हुए जब वह गांव में कदम रखते हैं तो अन्नदाता से नजरें मिलाने में उन्हें संकोच होता है।
इसकी वजह बेमौसम हुई ओला वृष्टि और वर्षा से खड़ी फसलों का तबाह होना है। बदले में किसान को मदद का सिर्फ आश्वासन ही मिल सका है। जनसंपर्क के दौरान और बड़ी चुनावी सभाओं में भी रोजगार, धर्म, आरक्षण, विकास, अपराध, शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा, महंगाई के मुद्दों पर तो सभी नेता गला सूखने तक बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं, लेकिन किसी भी सभा में क्षेत्र के पर्यावरण, नदी, तालाब, हरियाली, शुद्ध वायु, जैविक पद्धति से खेती आदि के बारे में कोई कुछ नहीं बोल रहा है।