विजया पाठक, एडिटर जगत विज़न
सुन लो रे! मध्य प्रदेश छोड़ दो, नहीं तो जमीन में गाड़ दूंगा',। भ्रष्टाचारी और माफियाओं को हड़काने सख्त लहजे में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने
चेतावनी देते हुए कहा है कि वो राज्य छोड़ दें नहीं तो 10 फीट के अंदर जमीन में गाड़ देंगे.। लेकिन मुख्यमंत्री की यह बात कितनी कारगार साबित हो रही है इसका उदाहरण राजधानी में पदस्थ जनता के करोड़ों रूपये डकारने वाले भ्रष्टाचारी आबकारी अधिकारी संजीव दुबे की मलाईदार पद पर पदस्थापना देकर देखा जा सकता है।मुख्यमंत्री शिवराज यही नहीं रुके उन्होनें तो यह तक कह दिया कि मेरी जनता ही मेरा भगवान है। माफिया को मसल के रख दूंगा। नशा कारोबारी, जमीन माफिया और गुंडों की कमर तोड़कर रख दूंगा. मुझे कोई नहीं रोक सकता। लेकिन सीएम शिवराज सिंह यह भूल गए कि प्रदेश के माफिया तो दूर की बात,पहले अपनी सरकार के अधिकरियों द्वारा जनता के पैसों को अपनी जेब में डालने वाले भ्रष्टाचारी अधिकारियों से कैसे निपटेंगे।
कौन है आबकारी अधिकारी संजीव दुबे:
संजीव दुबे वही अधिकारी है जिस पर इंदौर में शराब माफियाओं के साथ गठजोड़ कर सरकार को 42 करोङ रुपए के राजस्व का नुकसान पहुंचाने का आरोप है | इस मामले में दिलचस्प पहलू यह है कि सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक बाइस करोड रुपए की रिकवरी नहीं हो पाई है। इस मामले में संजीव दुबे सहित कई अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया था। ऐसा नहीं कि संजीव के खिलाफ यह पहला मामला हो ।पहले भी कई मामलों में संजीव आरोपों के घेरे में है और विदिशा, रतलाम व धार जिलों में रहते हुए शासकीय राजस्व को करोड़ों रुपए का नुकसान पहुंचाया है। लेकिन भाजपा और कांग्रेस नेताओं से नजदीकी के चलते संजीव का बाल बांका भी ना हुआ। 2004 में विदिशा जिले में फंसे हुए संजीव ने कई शराब दुकानदारों से बिना लाइसेंस फीस जमा कराएं उन्हें दुकानें आवंटित कर दी थी जिसके चलते सरकार को लगभग पैसठ लाख रूपये के राजस्व का नुकसान हुआ। इस मामले में संजीव को आरोप पत्र जारी हुआ था। हैरत की बात यह है कि पैसठ लाख की गंभीर आर्थिक क्षति के बाद भी सरकार ने संजीव के रसूख के चलते उसे केवल एक वेतन वृद्धि रोक कर दंडित किया और बाद में दूसरे आबकारी आयुक्त ने इस सजा को भी माफ कर दिया जबकि इस सजा को माफ करने के अधिकार केवल शासन को थे। रतलाम में पदस्थ रहते हुए ही भी संजीव के ऊपर शासन को 75 लाख रू का नुकसान होने की शिकायत की गई थी जिस पर सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। दरअसल रतलाम ,आलोट और जावरा में ठेकेदारों को पक्ष में राशि जमा न करने के बावजूद भी शराब प्रदाय कर दी गई थी जो शासकीय नियमों का सरासर उल्लंघन था। लेकिन संजीव के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई। इस मामले में अवैध शराब का ट्रक पकड़े जाने पर आरोपियों के खिलाफ सीजेएम न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए इनकी आबकारी अधिकारियों के साथ मिलीभगत की पुष्टि की थी। धार जिले में भी अवैध शराब से भरा ट्रक ठीकरी थाने में पकड़ा गया था।ऐसे ही कई कारनामे दुबे के नाम पर दर्ज़ है।
सरकारी आदेश का पालन नहीं करते आबकारी आयुक्त संजीव दुबे
यूँ तो आबकारी विभाग की कार्यशैली को देखकर यह लगता है कि वह अपने कर्तव्यों का पालन ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं स्थिति यह है कि पिछले दिनों प्रदेश में शराब की कीमतों को लेकर आबकारी आयुक्त ने एक आदेश निकाला और पूरे प्रदेश के अधिकारियों द्वारा यदि उसका पालन न किया जाये तो उनके खिलाफ कार्रवाई करने की चेतावनी तक दे डाली, मजे की बात यह है कि अपने इस आदेश के पालन में आबकारी आयुक्त ने जबलपुर जैसे कुछ अधिकारियों को जरूर दंडित किया लेकिन पूरे प्रदेश में शराब की कीमतों को लेकर ठेकेदारों द्वारा मनमाने भाव से बेचा जा रहा है उसका पालन कतई नहीं हो पा रहा है फिर चाहे वह भोपाल, इंदौर या ग्वालियर हो स्थिति यह है कि प्रदेश का शायद ही कोई जिला बचा हो जहां आबकारी आयुक्त द्वारा जारी कीमतों को लेकर आदेश का पालन हो रहा है। आबकारी आयुक्त द्वारा जबलपुर और भोपाल में की गई कार्रवाई को लेकर सवाल उठ रहे हैं तो वहीं विभाग के कई अधिकारियों द्वारा दबी जुबान से आबकारी आयुक्त द्वारा अपनी जाति के लोगों को बढ़ावा देने के आरोप लगाये जा रहे हैं, इन अधिकारियों का यह कहना है कि जब जबलपुर में कीमतों को लेकर वहां के अधिकारी पर कार्रवाई की गई तो इंदौर जहां आबकारी आयुक्त के जाति के लोग अधिकारी हैं वहां भी तो शराब आबकारी दुकानों पर औने-पौने दामों में बेची जा रही है यहां कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है जबकि राजधानी भोपाल में उडऩदस्ता के एक अधिकारी द्वारा एमपी नगर की एक दुकान पर ऊँचे दामों पर शराब बेचने को लेकर कार्रवाई की गई तो उस अधिकारी को हटाकर अपनी जाति के अधिकारी को प्रभारी बना दिया गया ऐसी ही नीति अपनाकर भोपाल आबकारी अधिकारी को बढ़ावा दे रहे हैं यह सभी जानते हैं कि भोपाल के संजीव दुबे सहायक आयुक्त आबकारी तमाम विवादों और आर्थिक अपराध में लिप्त होने के बावजूद भी उनपर कोई कार्रवाई न किये जाने को लेकर आबकारी आयुक्त पर सवाल उठ रहे हैं और लोग यह कहते नजर आ रहे हैं कि कई आर्थिक अपराध में लिप्त होने क बाद भी आबकारी आयुक्त की जाति के होने के कारण दुबे का जलवा कायम है। क्रमशः...