कोयले से लेकर गोबर तक के भ्रष्‍टाचार में डूबी छत्‍तीसगढ़ सरकार

Updated on 25-06-2021 03:38 PM
विनोद वर्मा, सौम्या चौरसिया, रूचिर गर्ग, आलोक शुक्‍ला और अनिल टुटेजा हैं पिलर
गलत नीतियों और नियमों से गर्त में छत्तीसगढ़

विजया पाठक, एडिटर, जगत विजन

      छत्तीसगढ़ की वर्तमान भूपेश बघेल सरकार विवादित पॉच लोगों (पिलर) पर टिकी है। ये चार पिलर हैं पत्रकार विनोद वर्मा, अधिकारी सौम्या चौरसिया, पत्रकार रूचिर गर्ग, आइएएस अफसर अनिल टुटेजा और आलोक शुक्‍ला। इन पॉचों का अपने-अपने क्षेत्रों में भ्रष्‍टाचार और विवादों से गहरा नाता रहा है। विनोद वर्मा की बात करें तो इनका नाम प्रदेश के पूर्वमंत्री राजेश मूणत की फर्जी अश्लील सीडी कांड में सामने आया है। इनके संरक्षण में ही फर्जी सीडी कांड का घिनौना खेल खेला गया था। यह कांड काफी चर्चित हुआ था। दूसरा नाम आता है सौम्या चौरसिया का। सौम्या चौरसिया वह महिला अधिकारी हैं जिन्हें इस समय सुपर सीएम कहा जा रहा है। मतलब साफ है कि सीएम भूपेश बघेल इस महिला अफसर की सलाह के बगैर एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाते हैं। कई महत्वपूर्ण फैसलों में सौम्या चौरसिया का सीधा दखल होता है। वह चाहे प्रशासनिक हों या व्यक्तिगत हों। सीएम भूपेश बघेल और सौम्या चौरसिया के काफी करीबी रिश्ते हैं। तीसरा नाम आता है रूचिर गर्ग का। रूचिर गर्ग वहीं शख्‍स हैं जिन्हें कभी अपनी गलत हरकतों की वजह से नवभारत और नई दुनिया प्रेस से निकाला गया था। वर्तमान में यह सीएम के मीडिया सलाहकार बने हुए हैं और गलत सलत सलाह देकर सरकार की और सीएम की छबि धूमिल करने पर तुले हुए हैं। यह बात भूपेश बघेल को समझ नहीं आ रही है। चौथा नाम आता है अनिल टुटेजा का। अनिल टुटेजा छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित नान घोटाले के प्रमुख आरोपी रहे हैं। यह घोटाला 35 हजार करोड़ का था और अनिल टुटेजा की भूमिका संदिग्ध थी। वर्तमान में टुटेजा सीएम बघेल के चहेते अफसरों में शुमार हैं और महत्वपूर्ण विभाग का मुखिया बना दिया है। पांचवा नाम आता है डॉ. आलोक शुक्‍ला का। राज्य सरकार ने डॉ. शुक्ला को लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के अपर मुख्य सचिव की महती जिम्मेदारी दी है। इसके अलावा चिकित्सा शिक्षा विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है। इससे पहले स्वास्थ्य विभाग की अपर मुख्य सचिव रेणु जी पिल्लै थी, जो बहुत ईमानदार और साफ स्‍वच्‍छ छबि वाली महिला अफसर हैं। डॉ. शुक्ला ने कोरोना काल में जमकर भ्रष्‍टाचार किया और महत्‍वपूर्ण विभाग का मुखिया होने के बावजूद कोरोना महामारी को काबू करने में असमर्थ रहे।
          हम कह सकते हैं कि यहीं वह पॉच शख्स हैं जिनके इर्द-गिर्द प्रदेश की पूरी सत्ता मूव कर रही है। अचंभित करने वाली बात है सीएम भूपेश बघेल भी इनकी सलाहों एवं मशविरों पर आंखें बंद करके विश्वास कर रहे हैं। जबकि सभी जानते हैं कि इन सबका विवादों से चोली दामन का साथ रहा है। यह बात भूपेश बघेल भी समझ रहे हैं लेकिन ऐसी कौनसी बात है जिसके कारण वह इन पर आश्रित होकर काम कर रहे हैं। ऐसा भी नहीं हैं कि इन पांचों के कारण सीएम को नुकसान नहीं उठाना पड़ा हो। ऐसे कई मौके आए हैं जब कहीं न कहीं कुछ फैसलों के कारण सरकार की काफी किरकिरी हुई है।
         प्रदेश के इतिहास की सबसे विफल सरकार है। कांग्रेस ने चुनाव के समय नारा दिया था वक्त है बदलाव का, अब जनता कह रही है वक्त है पछ्ताव का। विकास के काम से सरकार कोसों दूर है। जनता कांग्रेस के वादे के बारे में पूछ रही है। 36 वादों का क्या हुआ?
         इस समय प्रदेश में कोयला व्यापारियों को प्रति टन कोयला का 10-15% पैसा या अवैध टैक्स देना पड़ रहा है। छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार का एक सेंट्रलाइज्ड सिस्टम बना दिया गया है। प्रदेश की ढाई करोड़ जनता को यह उम्मीद थी कि कांग्रेस की सरकार बनने के बाद प्रदेश मे विकास की गंगा बहेगी पर खोखले वादों तथा सत्ता पाने के लिए आम जनता की भावनाओं से खिलवाड़ करने वाली इस भूपेश बघेल सरकार के लिए आने वाले दिन बहुत भारी पडऩे वाले हैं। मुख्यमंत्री बने रहने के लिए जनता के गाढ़े पसीने की कमाई के करोड़ों अरबों रुपए लुटाए जा रहे हैं। मुख्यमंत्री बघेल राष्ट्रीय हीरो बनने की चाहत में विज्ञापनों में पानी की तरह पैसा बहाकर आम जनता के मूलभूत अधिकारों का हनन कर रहे हैं। नरवा, गरुवा, घूरवा और बारी की हकीकत बेनकाब हो चुकी है। गोठान की सैकड़ों एकड़ सरकारी जमीन पर रसूखदार कांग्रेसियों तथा भू-माफियाओं का कब्जा हो चुका है। ढाई साल के अल्पकाल में ही पूरे प्रदेश के सैकड़ों तालाब पाटकर बेच दिए गए हैं।
        हम जानते हैं कि हाल ही में 17 जून को सीएम भूपेश बघेल ने अपनी सरकार के ढाई साल पूरे कर लिए हैं। इन ढाई साल में सरकार पर विफलता के कई आरोप लगे हैं। लगभग सभी क्षेत्रों में सरकार की नाकामी प्रदर्शित हुई है। जानकारों का कहना है कि सरकार की इस विफलता के पीछे इन पॉचों फर्जी स्तंभों का हाथ है। जो बघेल की छबि को धूमिल कर ही रहे हैं साथ ही प्रदेश की जनता के साथ भी धोखा कर रहे हैं। हमने देखा है कि कैसे कोरोना काल में प्रदेश की जनता की हालत खराब हुई। सरकार की अनदेखी के चलते हजारों लोग मौत के मुंह में समा गए। वहीं कोरोना को लेकर की गई लापरवाहियों के कारण छत्तीसगढ़ देश के अंदर महाराष्ट्र के बाद दूसरे नंबर पर रहा। 

छत्तीसगढ़ में तीन साल में 970 नक्सली वारदात, 113 जवान शहीद-
2018 में देशभर में 833 नक्सली घटनाएं दर्ज हुई थीं, जो 2019 में घटकर 670 और 2020 में घटकर 665 हो गई। परन्तु छत्तीसगढ़ में नक्सली घटनाएं बढ़ी हैं। छत्तीसगढ़ में 2018 से 2020 तक 970 नक्सली घटनाएं हुई थीं। इनमें सुरक्षाबलों के 113 जवान शहीद हुए थे। 2019 में छत्तीसगढ़ में 263 नक्सली घटनाएं दर्ज हुई थीं, जो 2020 में करीब 20% बढ़कर 315 हो गईं। जबकि 2019 में नक्सली हमलों में छत्तीसगढ़ में 22 जवान शहीद हुए थे और 2020 में 36 जवानों की जान गई। अब 2021 में एक साथ चौबीस जवानों की शहादत ने बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। छत्तीसगढ़ में 2018 से लेकर 2020 तक तीन सालों में 970 नक्सली घटनाएं हुई थीं, जिनमें सुरक्षाबलों के 137 जवान शहीद हुए। वहीं, 2019 में छत्तीसगढ़ में 263 नक्सली घटनाएं दर्ज हुई थीं, जो 2020 में करीब 20% बढ़कर 315 हो गईं।03 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के बीजापुर और सुकमा जिले की बार्डर पर बहुत बड़ी नक्सली वारदात हुई। इस नक्सली वारदात में करीब दो दर्जन सुरक्षाकर्मी शहीद हुए और कई जवान घायल हुए। इस नक्सली हमले के बाद एक बार फिर नक्सलवाद को लेकर विचार मंथन प्रारंभ हुआ। नक्सल प्रभावित राज्य जहां मुख्यमंत्री को डीजीपी से रोज़ ब्रिफिंग लेनी चाहिए पर मुख्यमंत्री पुलिस मुखिया से मिलना तक जरूरी नहीं समझते, उनके कनिष्ठ स्टाफ ही पुलिस मुखिया से बातें कर लेते हैं। 
        आखिर में सवाल यही आकर रूकता है कि नक्सलवाद की मूल जड़ तक सरकार क्यों नही जाना चाहती हैं। ऐसा भी नही है कि छत्ती‍सगढ़ से नक्सलवाद खत्म नही होगा। प्रदेश से नक्सलवाद को खत्म करने में प्रमुख रोल राज्य सरकार का होगा। हम जानते हैं कि छत्तीसगढ़ का बहुत बड़ा भू-भाग आज भी नक्सल समस्या से ग्रस्त है। नक्सली क्षेत्र के आदिवासी आज भी अपने आप को उपेक्षित और मुख्यधारा से कटा मानते हैं। सबसे पहले तो सरकारों को इस वर्ग का भरोसा जीतना होगा कि वह भी विकास की मुख्यधारा के हिस्सा हैं। ऐसा भी नही है कि प्रदेश में नक्सलवाद से निपटने के लिए प्रशासनिक तंत्र मौजूद नही है या केन्द्र सरकार से मदद नही मिल रही है। प्रशासनिक रूप से, आर्थिक रूप से राज्य सरकार को मजबूती प्रदान की जा रही है। भूपेश बघेल सरकार के पास आज भी ऐसे काबिल अफसर हैं जिन्हें नक्सलवाद से निपटने का अच्छा खासा तजुर्बा है। लेकिन वर्तमान भूपेश सरकार नक्सलवाद को खत्म ही नहीं करना चाहती है।

भूपेश बघेल सरकार की विफलताओं के कुछ उदाहरण

छत्तीसगढ़ गोबर राज्य- कार्यकारी चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा-
बिलासपुर हाईकोर्ट ने छत्तीसगढ़ पर बड़ी टिप्पणी की है।

 कार्यकारी चीफ जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने कहा कि पूरा छत्तीसगढ़ राज्य गोबर राज्य है! हाईकोर्ट की टिप्‍पणी से पूरे राज्य सरकार की फजीहत हो गई। जस्टिस प्रशांत मिश्रा ने तल्ख लहजे में यह टिप्पणी की है कि छत्तीसगढ़ में कोई स्मार्ट सिटी नहीं है पूरा राज्य गोबर राज्य है। जस्टिस मिश्रा ने यह कड़ी टिप्पणी एम.एम.पी.वाटर स्पोर्ट्स बनाम छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड की याचिका की सुनवाई करते हुए की है। दरअसल स्वामी विवेकानंद सरोवर बूढा तालाब रायपुर में वाटर स्पोर्ट्स के दोबारा टेंडर करने को लेकर एमएमपी वाटर स्पोर्ट्स द्वारा बिलासपुर हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई है। याचिका में छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड के अलावा रायपुर नगर निगम और रायपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड को भी पक्षकार बनाया गया था। गौरतलब है कि राज्य बनने के बाद यह पहला मौका होगा, जब हाईकोर्ट ने ऐसी गंभीर टिप्पणी की हो। पूरा छत्तीसगढ़ इस टिप्पणी से शर्मसार हो गया है। राज्य के विपक्षी दलों का कहना है कि अब जरा भी नैतिकता बची हो तो मुख्यमंत्री भूपेश बघेल तत्काल पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। क्या मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सही में इस्तीफा देंगे या बेशर्म होकर पद पर बने रहेंगे? यह देखने वाली बात है।

कर्जमाफी पर भूपेश सरकार फेल-2018 में जब राज्य में भूपेश सरकार ने शपथ ली थी तब वादा किया था कि किसानों का कर्जा माफ किया जाएगा, लेकिन आज स्थिति क्या है। किसानों का कर्जा माफ नही हुआ है। ढाई हजार रुपये सर्मथन का वादा करने वाली सरकार ने किसानों को आधा अधूरा पेमेंट किया। किसानों को बोनस भी नहीं दिया। ढाई साल बीत गए। दो साल के बोनस का पता अब तक कोई अता-पता नहीं है। भूपेश सरकार की वादाखिलाफी और कुप्रबंधन के चलते 2 साल में 500 से ज्यादा किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जिसका कारण रकबे में कटौती, नकली पेस्टीसाइड अन्य हैं। सरकार हर मोर्चे पर फेल है, सहकारी बैंक को छोड़ किसका कर्जा माफ किया। न्याय योजना से 450 करोड़ किसानों के काट लिए गए।
अभिव्‍यक्‍ति की आजादी पर पहरा- प्रदेश में मीडिया की स्थिति काफी गंभीर है। मीडिया के किसी भी प्लेटफार्म पर सरकार की विफलताओं को दिखाया नहीं जा सकता है। अगर कहीं कोई समाचार प्रकाशित या प्रसारित हो जाता है तो उसे शासकीय विज्ञापनों से वंचित कर दिया जाता है। इतना ही पिछले कुछ महिनों में ऐसी वारदातों हुई हैं जिनमें पत्रकारों को धमकाया गया है, उनके साथ मारपीट करवाई गई है। साथ ही कई पत्रकारों पर झूठे मुकदमें भी दर्ज करवाए गए हैं। 
वन नेशन-वन राशन पर भूपेश सरकार से सवाल- केंद्र सरकार की वन नेशन-वन राशन की स्कीम को प्रदेश में लागू नहीं की गई। जब पूरा पैसा केंद्र से मिल रहा है तो राशन देने में क्यों पीछे हट रहे हैं?
कर्ज में डूबा छत्तीसगढ़- बीजेपी ने 15 साल में 33 हजार करोड़ का कर्ज लिया था लेकिन भूपेश सरकार ने 30 महीने में 36 हजार 170 करोड़ का कर्जा ले लिया है। अनुमान लगाया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ सरकार आने वाले ढाई साल में 1 लाख 30 हजार करोड़ का कर्जा लेगी।

पूर्ण शराबबंदी एक तमाशा- शराबबंदी का वादा सरकार भूल गई। ये शराब का प्रभाव है कि महासमुंद में 6 लोगों की जान गई। गंगाजल लेकर कसम खाने वाली भूपेश सरकार ने घर-घर शराब पहुंचा दी। जिसका खामियाजा प्रदेश की माताओं बहनों को भुगतना पड़ रहा है। शराबबंदी का वायदा कर सत्ता में आयी भूपेश सरकार ऑनलाइन शराब बेच रही है।
कानून व्यवस्था चौपट-छत्तीसगढ़ में पिछले ढाई साल में 7 बलात्कार, 1281 हत्या के प्रयास, 4900 बलात्कार हुए हैं। प्रदेश में कानून व्यवस्था पूरी तरह ठप हो चुकी है।
बेरोजगारों की समस्या- नौजवान सुसाइड करने को मजबूर हैं। भूपेश सरकार ने PSC की गरिमा गिरा दी है।
भ्रष्टाचार का बोलबाला- हर जिले में सट्टे और जुएं के खुले ठेके लगे हैं। सीएम कन्या विवाह योजना में बेटियों की शादी में पैसा खाने वालों से क्या उम्मीद रखेंगे। ये सरकार बच्चों का निवाला छीनने का काम कर रही है। गरीबों के साथ छल किया जा रहा है। 6 लाख आवास केंद्र ने स्वीकृत किए लेकिन इन्होंने सब चौपट कर दिया। 4 लाख आवास लौटा दिये गये। 1 लाख 80 हजार बनकर तैयार हैं लेकिन तीसरी किस्त नहीं दे रहे।

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