विजया पाठक, एडिटर जगत विजन
मध्य प्रदेश की राजनीतिक सरजमीं पर बीते ढ़ाई वर्ष बड़े ही उथल पुथल वाले रहे। पहले भाजपा ने जोड़तोड़ कर जहां 15 महीनें की कमलनाथ सरकार को सत्ता से बेदखल किया। उसके बाद खुद को स्थायित्व देने के लिए प्रदेश में 28 सीटों पर उपचुनाव हुए। इन उपचुनाव में एक बार फिर भाजपा ने जीत दर्ज की। अब एक बार फिर प्रदेश में चर्चा का विषय बना हुआ है दमोह उपचुनाव। चुनाव आयोग ने जहां 17 अप्रैल को दमोह में उप चुनाव कराए जाने की तारीख की घोषणा की है। वहीं, दोनों ही राजनीतिक पार्टी भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने उम्मीदवारों के नामों की दावेदारी पेश कर दी है। राजनीतिक गलियारों में जैसा की चर्चा थी उसी के मुताबिक दमोह से भाजपा ने पूर्व वित्तमंत्री जयंत मलैया के बेटे को टिकट न देकर कांग्रेस को छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले राहुल लोधी को दावेदार बनाया है। वहीं, कांग्रेस ने दमोह जिला कमेटी के अध्यक्ष अजय टंडन को चुनावी चेहरा बनाया है। राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो दमोह उप चुनाव की सीट भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौति है। क्योंकि राहुल लोधी ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था। उस चुनाव में राहुल को जीत दिलाने में बड़ी भूमिका थी पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ की। लेकिन इस बार स्थिति उलट है। देखा जाए तो किसी भी विधानसभा क्षेत्र में प्रत्याशी अपने नाम और अपनी प्रतिष्ठा पर चुनाव जीत दर्ज करता है। लेकिन राहुल लोधी के साथ ऐसा नहीं है। उन्हीं के विधानसभा क्षेत्र में राहुल की छवि एक मौकापरस्त की तरह है, जिसने पद की लालसा में कांग्रेस का दामन छोड़ दिया जिसके कारण अब उपचुनाव की नौबत आई है। इस बात से भाजपा के आला नेता भी भली भांति परिचित है। यही वजह है कि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने दमोह उपचुनाव के लिए तैयार की गई टीम में बाहर के सदस्यों को स्थान दिया है जिससे साफ जाहिर होता है कि भाजपा भी कहीं न कहीं भितरघात से सहमी हुई है। सूत्रों की मानें तो अजय टंडन को चुनाव में जीत दिलवाने में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में मलैया उनकी मदद कर सकते है। क्योंकि लोधी को मिले टिकट से मलैया खुद भी आहत है। कहा जा रहा है कि टंडन साफ सुथरी छवि वाले नेता है और उन्हें इस बार चुनाव के मैदान में बाजी मारने का अवसर मिलना भी चाहिए। यही वजह है कि कमलनाथ अपनी टीम के सदस्यों के साथ दमोह में सक्रिय है और वो राजा पटेरिया सहित कई स्थानीय नेताओं को एकुजट कर चुनाव की तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे है। प्रदेश में विधायकों द्वारा दल बदलने का क्रम जो शुरू हुआ है उस पर चुनाव आयोग को भी कड़ा रुख अपनाना चाहिए और दोबारा उस सीट पर उपचुनाव कराए जाने पर आने वाले खर्च को उसी प्रत्याशी से वसूलना चाहिए जो एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाता है। क्योंकि बार-बार उपचुनाव कराए जाने से कहीं न कहीं जनता के टैक्स से एकत्रित किया गया लाखों करोड़ों रुपए खर्च होता है और इस बात से इन प्रत्याशियों को कोई फर्क नहीं पड़ता।